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ऐस्ट्रिड
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ऐस्ट्रिड

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About this ebook

किताब के बारे में:

एक घमंडी बाप के घर पैदा होने वाला फ्रांसिस, अपने व्यवसाय और काम के जूनून में हमेशा डूबा रहने वाला करोड़पति था, जो कि हाल ही में दिवालिया घोषित होने की वजह से आत्महत्या करने की कगार पे था | अपनी ज़िंदगी में हो रही उथल पुथल को समझने के लिए, और अपने होने वाले तलाक के बारे में सोचने के लिए, फ्रांसिस बिना कुछ सोचे समझे, इस अनजाने से समुन्द्र तट पर एक अनजानी सी लड़की, ऐस्ट्रिड, से बातें करने के लिए बैठ जाता है | यह बातचीत एक नया ही मोढ़ ले लेती है जहां अस्त्रिड फ्रांसिस को उसकी असली परेशानियों की वजह ढूँढने में उसकी मदद करती है, और उसके जीवन को एक नयी दिशा देती है | यह दिशा फ्रांसिस को उसकी खोई हुई खुशियों की ओर ले जाती है, जबकि ये खुशियाँ बस, कुछ ही क़दमों के फासले पे हमेशा से फ्रांसिस का इंतज़ार कर रहीं थीं |

किताब का आखिरी पन्ना पाठक को ज़िंदगी के एक चौंका देने वाले मोड़ से रू ब रू कराता है | 

Languageहिन्दी
PublisherBadPress
Release dateMay 23, 2018
ISBN9781547526499
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    ऐस्ट्रिड - Jean-Marie Kassab

    ऐस्ट्रिड

    द्वारा :

    जोन मारी कस्साब

    वो सुहानी सुबह

    बहुत साल बीत गए जब मैं उससे पहली बार मिला था, पर लगता है मानो कल की ही बात हो | वो समुन्द्र का शांत किनारा, जहां चारों ओर केवल उसी की छवि फैली थी, केवल वो और शांत, गुदगुदाती सी सूरज की किरने, वो नज़ारा, वो चेहरा, वो आवाज़ और अलफ़ाज़, उस दिन की हर एक बात आज भी मेरे मन में पूरी तरह से अंकित है |

    मैंने तय कर लिया था की मैं अपनी परेशानियों को हमेशा के लिए ख़त्म कर दूंगा, जिसके लिए मुझे ऐसी जगह की तलाश थी जहाँ मैं अपने में अंतर्ध्यान होकर, अपने जीवन का सबसे एहम फैसला ले सकूं, हो सकता है की मुझे इस फैसले पे पछतावा हो बाद में | इसलिए, एक शांत जगह और एक शांत मन से यह फैसला लेना बहुत ज़रूरी था |

    मैंने अपने जीवन के बहुत से एहेम फैसले नहाते समय या ट्राफिक में फसे हुए लिए हैं, और एक बार तो लिफ्ट में, बहुत से लोगों के बीच में लिए हैं | इस बार शान्ति मौके की ज़रुरत थी | मुझे अपनी ज़िंदगी का ऐसा फैसला लेना था जिसपर मेरा बाकी का जीवन निर्भर करता था, और इसीलिए मैं कुछ देर अपने आप से बात करना चाहता था, अपने में खो कर अपनी ज़िन्दगी को आंकना चाहता था और बाकी बचे हुए दिनों का क्या अंजाम हो, यह तय करना चाहता था | अब मैं जिंदगी के उस पड़ाव पर पहुँच गया था जहां से केवल अंत ही नज़र आ रहा था | फैसला लेना अति आवश्यक भी था, और मुश्किल भी|

    मैंने हमेशा उन लोगों का मज़ाक बनाया था जिन्हें निर्णय लेने मैं समय लगता है , जो सोचने में समय बर्बाद करते हैं | ऐसे लोग जो कोई फैसला लेने से पहले रोडिन का सोचने वाला, बहुत गंभीर होक सोचने की शक्ल बनाते हैं, और सारा समय केवल सोचने में ही व्यर्थ कर देते हैं | मैं बात कर रहा हूँ ऐसे लोगों की जो हथेली पर मुह रख के सोचते रहते हैं, और या तो अपना लक्ष्य तय ही नहीं कर पाते हैं, या तो लक्ष्य तक पहुचने के सफर की शुरुआत में ही हार मान लेते हैं, क्यूंकि फैसला लेने का जोश ही नहीं होता उनमें |

    जहाँ तक मेरा सवाल था, मेरे फैसले हमेशा तुरंत ही होते थे, बिना कुछ सोचे | परन्तु मेरे लिये यह बहुत ज़रूरी था कि सारी जानकारी एक टेबल के प्रारूप में हो | फायदे एक तरफ और नुक्सान एक तरफ, जैसे किसी व्यापार की बैलेंस शीट तैयार की जाती है | जब भी मुझे फायदे नुक्सान से ज़्यादा नज़र आते, मैं उस व्यापार में सर पर पैर रख के कूद जाता, वरना उस व्यापार के बारे में दुबारा सोचता तक नहीं था , और निकल पड़ता था किसी और व्यापारिक सौदे की तलाश में |

    मैं इस तरह से केवल व्यापारिक ही नहीं, निजी ज़िन्दगी के फैसले भी लेता था | यह फायदे और नुक्सान को नाप कर फैसला लेने का तरीका मेरे लिए हमेशा कारगर साबित होता था, पर इस बार कुछ और ही लिखा था किस्मत में |

    धीरे धीरे यह तरीका मेरे जीवन शैली का एक हिस्सा बन गया था, मानों मेरा जीवन जीने का कोई अपना ही सिद्धांत हो | किसी भी फैसले को लेने से पहले उसके बारे में जितने प्रश्न पूछ लो उतने कम थे मेरे लिए, और हों भी क्यों ना, हर बार जीतना कोई बच्चों का खेल तो नहीं | पर सोच समझ के फैसला लेना ? कभी नहीं | अच्छे से जोड़ घटाव करने के बाद, जहाँ फायदा नज़र आया, वहां, बिना समय बर्बाद किये मैं फैसला ले लेता | मेरा ये सिद्धांत था की अगर तो कोई निष्कर्ष निकलना है तो वो तुरंत, दिन की रौशनी में ही निकल आएगा, अन्यथा कभी नहीं निकलेगा | ज्यादा सोच इंसान को कमज़ोर बनाती है, और मैं कभी भी कमज़ोर नहीं बनना चाहता था |

    मैं हमेशा से सफ़ेद और काला ही जानता था , सलेटी रंग तो मेरे लिए कभी था ही नहीं | चीज़े या तो साफ़ होनी चाहिए, या नहीं होनी चाहिए, बीच में लटकी बात जमती नहीं थी मुझे | पर फिर भी हम चारों तरफ से सलेटी रंग की दुनिया से ही घिरे हैं | बहुत दुःख होता है ये जानकर कि ये दुनिया इस सलेटी रंग में ही रंग गयी है | आपके चारों ओर ऐसे लोग भरे पड़े हैं जो फैसला लेने से डरते हैं, और ज़िन्दगी भर हाँ और में ही अटके रहते हैं | हमेशा बीच का रास्ता चुनने वाले लोग | उन्हें बीच में रहने से एक सुरक्षा महसूस होती है, और वो इसी दुनिया में खुश हैं | इसके अलावा अगर हम गौर करें, और यह मेरा मानना था कि सलेटी कोई रंग नहीं है, या तो वो फीका काला है या वो गन्दा सफ़ेद, न उससे ज़्यादा, न उससे कम | उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं हैं |

    कई बार मेरे करीबी लोग मुझ पर नाराज़ होते थे की मैं कैसा निर्दयी दरिंदा बन गया हूँ, पर कुछ ही लोग मेरे मुह पे बोल पाते थे |वो बात अलग है की यही नाराज़गी मुझे बाकी लोगों के चेहरे पे साफ़ दिखायी देती थी |

    कुछ ही लोग हैं ऐसे मेरे जीवन में जो मेरे हितैषी हैं और मुझे सच्चे मन से चाहते हैं | यही वो लोग हैं जो मेरी गलतियां मेरे मुह पे बोलने का साहस रखते थे | पर अवलोकन मेरे चरित्र का मुझे अपने असास पास के बाकी लोगों के चेहरे पे भी साफ़ पड़ने में आता था, बस वो मूह पे कहने से डरते थे | परन्तु ज्यादातर मैं ऐसे लोगों से घिरा था जो मुझसे डरते थे और पीठ पीछे मेरी आलोचना करते थे, और यह बात मुझे बहुत दुःख भी पहुचाती थी |

    अगर मुझे कहीं अपने लिए प्यार नज़र आता था, तो पीठ पीछे की आलोचना मुझे ज्यादा दुःख देती थी | कुछ मेरे सोचने के नज़रिए को गलत बोलते थे, और कुछ मेरे निर्दयी फैसलों को | हमेशा यही सुना है की ज़िन्दगी का हर छोटा बड़ा फैसला यूहीं, किसी हिसाब किताब से नहीं हो जाता, या तो हाँ या तो ना से | फायदा है तो हाँ, नुक्सान है तो , उसके बीच का अवलोकन करना भी अती आवश्यक होता है | ज़िंदगी कोई गडित का कोई फार्मूला नहीं | मैंने कई बार अपने दोस्तों और यहाँ तक की अपने दुश्मनों से भी सुना था की ज़िन्दगी कोई कंप्यूटर नहीं जिसमे शून्य और एक के प्रोग्राम से ही सब हल निकल आते है | चाहे कोई कुछ भी कहे, मेरे लिए जीवन का यही सच था और सफलता की यह एक ही चाबी थी और शायद मेरे व्यवहार के पीछे भी यही कारण था, फिर चाहे वो व्यापारिक फैलसे हों, या निजी | कई बार मुझे एक निर्दयी रोबोट बुलाया जाता था, परंतु मैं ऐसी टिप्पड़ियों की अवहेलना करते हुए, उनको नज़रंदाज़ करते हुए, चलता रहा हमेशा अपने इस अतुलनीय सफ़र पे | ऐसी बातों पे मेरा जवाब हमेशा एक ही होता था, दिल की बातें कवियों के लिए रहने दो, दिल को जोड़ना उनका काम है, जीवन के उतार चड़ाव, नफ़ा नुक्सान, हम जैसे सफल व्यापारियों पे छोड़ दो, और देखो दुनिया कितनी हसीं हो जाती है |

    मेरा काम करने का यही तरीका था , खुशियाँ खरीदने का और सफल बनने का | यही था मेरा जीत का हतियार, ठीक एक फ्रांस के प्रसिद्द उपन्यास थे हंचबैक के उस राजा हेनरी द लगादिअर की तरह, जो अपने दुश्मन के मस्तिष्क में तलवार गुसेड़ने से पहले उसे अच्छी तरह से घुमाता था ताकि दुश्मन के मस्तिष्क में छेद हो जाये और उसकी जीत पर कोई शक न रह जाए | मैंने बचपन में टीवी देखते हुए हमेशा इसी फ्रांस के राजा के बारे में सोचा और उसी की तरह बनना चाहा | मैं भी एक ऐसी ही तलवार चाहता था हमेशा से, जो कभी पराजित नहीं हो सके, और मुझे हमेशा विजयी बनाए | परन्तु जब मुझे उसके इस्तेमाल की गलती समझ आ गयी, तब मैंने उसे बहुत कोसा और उसको इस्तेमाल करने से नफरत होने लगी मुझे | धीरे धीरे मेरी जीत का यह सूत्र मेरी आदत बन गया और कई बार इसकी वजह से जितने के बाद, मानो यह मेरा ही दुश्मन बन गया और मेरे ही दिल में खंजर बनके घुस गया | मेरी यह जीत की गडित मेरे ही खिलाफ चली गयी | मेरी जीतने की भूख अब एक लालच बन गयी थी |

    मेरा लालच इतना बढ़ गया की जब भी मुझे कोई फायदा कमाने का नया लक्ष्य मिलता तो मैं पूरी तरह से उसमे घुस जाता, अपनी जी जान लगा के, अपने सारे साधन उस लक्ष्य को पाने में लगा देता | मुझे हर बार यह जुआ खेलना होता था, हर बार अपने सारे पैसे डाव पे लगाके, पूरे आत्मविश्वास के साथ, जीत की ओर अग्रसर होना | सच कहूं, तो यह बहुत ही अलग सी, खुशी थी |

    अपने आप को दूसरों से अलग करने की होड़ में मैंने या तो सबकुछ या कुछ नही को अपना खुद का सिद्धांत बना लिया था | सच कहूँ तो यह मेरे जीवन का लक्ष्य बन गया था | दुर्भाग्य वश, यह मेरे लिए कब बददुआ बन गया, कुछ पता ही नहीं चला | मैं एक ऐसे जुआरी की तरह बन गया था जो हर बार या तो जीतने के लिए खेलता या तो अपना पैसा वापिस पाने के लिए | हर बार एक और बाज़ी सिर्फ यह सोच कर कि यह आखिरी बाज़ी है, फिर एक और, एक और, और वो आखिरी बार कभी आता ही नही |

    हताश और हारा हुआ, पर ध्रिड, कि अपनी परेशानियों को हमेशा के लिए ख़त्म कर दूंगा, और इसी वजह से मैं इस शांत सुन्दर समुन्द्र के तट पर पंहुचा जो धरती के दुसरे छोर पे है | मुझे यहाँ यह फैसला लेना था की अपना जीवन ख़त्म करके मुझे इन सब परेशानियों का हल मिलेगा, या इनसे लड़ कर | आत्महत्या का ख़याल ही मुझे हमेशा अपमानजनक और गैरजिम्मेदारी का प्रारूप लगता था, परंतु आज यह ख़याल मेरे दिमाग में चुपके से घर कर गया | अब आत्महत्या असंभव नहीं, एक विकल्प सा प्रतीत होने लग गया था |

    यह आश्चर्यजनक सा प्रतीत होता है की जो यात्रा जीवन का अंत बनने जा रही थी, अब वही मेरे पुनर्जनम का कारण बन गयी | यह साबित हो गया की अगर यात्रा आरम्भ करना आसान है तो गंतव्य तक पहुंचना, दूसरी बात है |

    मुझे पहले से यह ज्ञात था की मेरे हाथ अपना ही जीवन समाप्त करने में ज़रूर कापेंगे और अपनी ही गोली अपने सीने में दागने से थर्थारायेंगे | फिर भी मैंने सुबह इस समुद्र तट पे आने से पूर्व अपनी बन्दूक अलमारी से निकाल के, साफ़ करके रख ली थी | अपनी

    बन्दूक को अपना ही जीवन समाप्त करने के लिये इस्तेमाल करने का ख़याल कुछ अवास्तविक सा प्रतीत हो रहा था, परन्तु फिर भी मानो यह छोटा सा खिलौना मुझे इस नर्क से मुक्त करने के लिये स्वयं ही आतुर हो रहा था और मेरे ओवेर्कोत की जेब में अपने आप ही चला गया था |

    स्मिथ और वेस्सन

    वो ३८ कैलिबर वाली निकल की बनी हुई स्मिथ और वेसन थी | वो मुझे तोहफे में मिली थी, असल में वह एक पुराने पुलिस अफसर और मेरे पिता के अच्छे दोस्त थे, और मुझे अपने बेटे सामान मानते थे | यह तोहफा देते समय वे अपने बूढ़े हाथ प्यार से मेरे कंधे पे रखते हुए बोले : " आशा करता

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