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कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)
Ebook180 pages1 hour

कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)

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About this ebook

विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की सत्ताईसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

बहुत धन्यवाद

राजा शर्मा

Languageहिन्दी
PublisherRaja Sharma
Release dateJul 4, 2018
ISBN9781370065110
कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)
Author

Raja Sharma

Raja Sharma is a retired college lecturer.He has taught English Literature to University students for more than two decades.His students are scattered all over the world, and it is noticeable that he is in contact with more than ninety thousand of his students.

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    कथा सागर - Raja Sharma

    www.smashwords.com

    Copyright

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)

    राजा शर्मा

    Copyright@2018 राजा शर्मा Raja Sharma

    Smashwords Edition

    All rights reserved

    कथा सागर: 25 प्रेरणा कथाएं (भाग 27)

    Copyright

    दो शब्द

    बहुमूल्य मुस्कान Bahumoolya Muskan

    प्रेम इससे सीखो Prem Isse Seekho

    मेरे छोटे बच्चे Mere Chote Bachhe

    बेजुबान सहयोग (सत्य कथा) Bejubaan Sahyog

    अहमद और रमन (सत्य कथा) Ahmad Aur Raman

    पेपर वाला (सत्य कथा) Paper Wala

    डर दिमाग में होता है Dar Dimag Mein Hota Hai

    शांति का सौंदर्य Shanti Ka Saundarya

    रेशमा Reshma

    क्या नाम दे? Kya Naam De?

    पिताजी कम बोलते थे Pitaji Kam Boltey They

    सृजनकार Srijnakaar

    आशीर्वाद Aashirwaad

    चिट्ठियां Chitthiyaan

    पहल तो हो Pahal To Ho

    अंधों की दुनिया Andhon Ki Duniya

    एक और प्रयास Ek Aur Prayas

    प्यास Pyaas

    भिखारी Bikhari

    दादाजी की कहानी Dadaji Ki Kahani

    गलत दृष्टिकोण Galat Drishtikon

    वो एक झूठ Wo Ek Jhooth

    इतवार की सैर Itwaar Ki Sair

    वो दोनों Wo Dono

    बहुत धीरे धीरे Bahut Dheere Dheere

    दो शब्द

    विश्व के प्रत्येक समाज में एक पीढ़ी द्वारा नयी पीढ़ी को कथाएं कहानियां सुनाने की प्रथा कई युगों से चलती चली आ रही है. प्रारंभिक कथाएं बोलकर ही सुनायी जाती थी क्योंकि उस समय लिखाई छपाई का विकास नहीं हुआ था. जैसे जैसे समय बीतता गया और किताबें छपने लगी, बहुत सी पुरानी कथाओं ने नया जीवन प्राप्त किया.

    इस पुस्तक में हम आपके लिए 25 प्रेरणा कथाएं लेकर आये हैं. यह इस श्रंखला की सत्ताईसवीं पुस्तक है. हर कथा में एक ना एक सन्देश है और इन कथाओं में युवा पाठकों, विशेषकर बच्चों, के दिमाग में सुन्दर विचार स्थापित करने की क्षमता है. ये पुस्तक आपको निराश नहीं करेगी क्योंकि ये कहानियां दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों से ली गयी हैं.

    कहानियां बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत की गयी हैं. आप अपने बच्चों को ऐसी कहानियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करके उनपर बहुत उपकार करेंगे. आइये मिलकर कथाओं की इस परम्परा को आगे बढ़ाएं.

    बहुत धन्यवाद

    राजा शर्मा

    बहुमूल्य मुस्कान Bahumoolya Muskan

    मोहन उस समय दस वर्ष का था. एक दिन उसके पिता के कारण मोहन के जीवन में रमन आया. रमन ने एक वर्ष में ही मोहन के जीवन पर अमिट छाप छोड़ दी थी. वो अभी भी उसकी स्मृतियाँ साथ लेकर चलता है.

    उन दिनों मोहन का परिवार गरीबी से संघर्ष कर रहा था. उसके पिता जी बच्चों को पढ़ाते थे और कुछ पैसे कमाते थे.

    एक दिन एक लम्बा तगड़ा लड़का मोहन के पिताजी के पास आया और उसने बताया के वो ग्यारहवीं में पढता था. उसने अपनी गणित की जाँची हुई उत्तर पुस्तिका मोहन के पिता जी को दी.

    मोहन के पिताजी ने कहा, १५० में से सिर्फ ३ अंक गणित में. बोलो अब तुम क्या चाहते हो? मैं क्या करूँ तुम्हारे लिए? मैं तो एक शिक्षक हूँ कोई जादूगर तो नहीं.

    उस लड़के ने कहा, मेरा नाम रमन है. मेरी माँ इस उत्तर पुस्तिका में दिए गए अंकों को देख कर दहाड़ें मार कर रो रही है.

    रमन मोहन के पिताजी के पैरों पर गिर पड़ा और बोला, सर, कृपया मेरी सहायता कीजिये. ऐसा कुछ कर दीजिये के अगली बार मेरी माँ मुस्कुराने लगे.

    मोहन के पिताजी को ऐसे बहुत से उद्दंड और कामचोर छात्रों से व्यव्हार करने का अनुभव था.

    रमन के पैरों पर गिरने के नाटक से वो प्रभावित नहीं हुए और बोले, चलो ये सब तो ठीक है परन्तु तुमको बहुत परिश्रम करना होगा. मेरी फीस भी समय पर देनी होगी.

    मोहन के पिताजी को उस लड़के को इस तरह फीस के बारे में कहना अच्छा तो नहीं लगा परन्तु बहुत से छात्रों ने उनको भूतकाल में धोखा दिया था और फीस बिना दिए ही पढ़कर चले गए थे.

    रमन उस प्रकार का लड़का नहीं था. वो तो सिर्फ अपनी माँ के चेहरे पर फिर से मुस्कान लाना चाहता था.

    अगले दिन से वो रोज सुबह चार बजे पढ़ने आने लगा. वो उस कमरे के दरवाजे को ठीक चार बजे खटखटाता था जिस कमरे में मोहन और उसके शिक्षक पिताजी सोते थे.

    मोहन के पिताजी ने मोहन से कहा था, रमन को अपने घर से साइकिल चलाकर यहाँ तक आने में एक घंटा तो लगता ही होगा. वो सुबह तीन बजे ही घर से निकलता होगा.

    जब उसके पिताजी रमन को पढ़ाते थे, मोहन रजाई के नीचे से चुपके से बाहर देख लेता था. वो कुछ देर बाद फिर से सो जाता था.

    रमन अपनी पढाई के प्रति बहुत ही गंभीर लगता था. वो पूरे एक वर्ष तक पढ़ना चाहता था. मोहन के पिताजी और रमन गणित के सवालों के बारे में खूब चर्चा करते थे.

    वो रमन को अपने पाठ को बार बार दोहराने को कहते थे. रमन खूब अभ्यास करता था.

    मोहन ने कभी भी उसके पिताजी को किसी छात्र के साथ इतना परिश्रम करते हुए नहीं देखा था. ऐसा लगता था के रमन और मोहन के पिताजी दोनों के सर पर कोई भूत सवार हो गया था.

    उसकी लगन को देखकर ही लगता था के वो सब कुछ बहुत अच्छे से सीख रहा था. बारहवीं के इम्तेहान में रमन को गणित में १०० में से १०० अंक मिले.

    ये तो एक विलक्षण उपलब्धि थी. परीक्षा का परिणाम आने के बाद वो अपने गुरूजी, मोहन के पिताजी, के पैरों पर दंडवत हो गया. मोहन के पिताजी की आँखों में आंसू थे.

    रमन ने मोहन के पिताजी से कहा, आपने मेरी माँ के चेहरे पर मुस्कान ला दी. मैं आपका ये ऋण कैसे चुकाऊंगा?

    मोहन के पिताजी मुस्कुराये और कहा, तुमने तो मेरा क़र्ज़ अपने प्रेम और आदर के द्वारा पहले ही चुका दिया है.

    मोहन के पिताजी बच्चों को पढ़ाते रहे और अपनी जीविका कमाते रहे. उनकी आर्थिक स्तिथि में कोई सुधार नहीं हुआ था.

    एक दिन अचानक ५ वर्षों के बाद एक कार घर के बाहर रुकी. नीले सूट में एक सुन्दर नौजवान उतरा और घर के अंदर आया. वो रमन था. उसको देख कर मोहन के पिताजी की आँखों में ख़ुशी आ गयी.

    कुछ देर बातचीत के बाद रमन ने अपने जेब में से एक चेक निकाला और मोहन के पिताजी से कहा, "मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकता पर एक छोटा सा स्कूल तो खुलवा ही सकता हूँ.

    मेरा अब आयत निर्यात का व्यापार है. गुरूजी ये चेक रख लीजिये और एक छोटा सा स्कूल खोल लीजिये. कृपया ठुकराइयेगा मत."

    इससे पहले के मोहन के पिताजी कुछ कह पाते, रमन उठकर बाहर चला गया और उसकी कार घर से दूर होती चली गयी.

    मोहन के पिताजी के हाथ में एक लाख रूपए का चेक था जो उस समय के हिसाब से एक घर खरीदने के लिए पर्याप्त था. उनकी आँखों से आंसू गिरने लगे.

    मित्रों,

    बहुत से लोग गुरुओं से ज्ञान प्राप्त करते हैं और ये समझते हैं के कुछ रूपए फीस देकर उनका क़र्ज़ चुकता हो गया है. नहीं, ऐसा नहीं होता है. वो तो जीवन यापन की राशि होती है.

    परन्तु कुछ छात्र ऐसे भी होते हैं जो अपनी सफलता में अपने गुरुओं को भी शामिल कर लेते हैं. आप किस श्रेणी में आते हैं जरा सोचियेगा.

    प्रेम इससे सीखो Prem Isse Seekho

    जब वो और उसकी पत्नी वृद्धाश्रम से बाहर आ रहे थे, उसके चेहरे पर चिंता और दुःख स्पष्ट देखे जा सकते थे, परन्तु उसकी पत्नी बहुत ही प्रसन्न लग रही थी.

    सीढ़ियों से नीचे उतरकर अपनी कार की तरफ जाते हुए वो अपनी जेबें टटोलने लगा.

    उसकी पत्नी ने कहा, क्या ढून्ढ रहे हैं? कुछ खो गया है क्या?

    उसने कहा, लगता है मैं वृद्धाश्रम में कुछ भूल आया हूँ.

    पत्नी ने तंज़ करते हुए कहा, "सीधे सीधे क्यों नहीं कहते के अपने पिताजी की याद आ रही है. उनकी अब चिंता मत करो. यहाँ उनका घर से भी अच्छा ख्याल रखा जाएगा.

    हम लोग बीस हज़ार रुपए हर महीने उनकी देखभाल के लिए देंगे. वो यहाँ खुश रहेंगे. चलो अब जल्दी करो. मुझे घर से फिर ब्यूटी पार्लर भी जाना है."

    उसने अपनी पत्नी की बात को अनसुना कर दिया और बोला, मेरा मोबाइल अंदर छूट गया है. मैं लेकर आता हूँ.

    पत्नी बोली, लाओ कार की चाबी मुझे दो. मैं ऐ सी चालू करके कार में बैठती हूँ. कितनी गर्मी है यहाँ तो?

    वो पलटा और दौड़कर फिर से वृद्धाश्रम के अंदर चला गया. उसने पिताजी को उनके कमरे में खोजा पर वो वहाँ नहीं थे. हाँ उसका मोबाइल मेज पर रखा हुआ था. उसने फ़ोन उठाकर अपनी जेब में रख लिया.

    पिताजी को खोजने के लिए वो आश्रम के पीछे के

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