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ईसाईयत की प्राचीन मिस्री जड़ें
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ईसाईयत की प्राचीन मिस्री जड़ें

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ईसाईयत की मिस्री जड़ें, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में।

यह पुस्तक ईसाईयत की प्राचीन मिस्र से जुड़ी ऐतिहासिक और आध्यात्मिक, दोनों प्रकार की जड़ों को उजागर करती है। इस किताब के दो भाग हैं। पहला भाग दर्शाता है कि “इतिहास के यीशु” के विवरण पूरी तरह से मिस्र के फ़िरऔन, त्वत/तुत-अंख-आमेन के जीवन और मृत्यु पर आधारित हैं। दूसरा भाग दर्शाता है कि “आस्था के यीशु” और ईसाई सिद्धांत सभी मिस्री मूल के हैं-जैसे शिक्षाएं /संदेश, ब्रह्मांड और मानव की सृष्टि (उत्पत्ति की पुस्तक के मुताबिक) के मूलतत्व के साथ-साथ धार्मिक छुट्टियां भी मिस्री मूल की ही हैं।

जिस चीज को अब ईसाई धर्म के नाम से बताया जाता है, वह न्यू टेस्टामेंट के काफी पहले से ही प्राचीन मिस्र में मौजूद था। ब्रिटिश मिस्री पुरातत्वशास्त्री, सर इ. ए. वैलिस, ने अपनी पुस्तक, द गॉड ऑफ़ द इजिप्शियंस (1969) में लिखा हैः

जिस नए धर्म (ईसाईयत) का सेंट मार्क और उसके निकट अनुयायियों द्वारा वहां प्रचार-प्रसार किया गया, वह मूल रूप से ओसीरिस, इसिस और होरस की पूजा से काफ़ी हद तक मिलता-जुलता था।

जिन लोगों ने मिस्र की ओसीरिस/इसिस/होरस की कहानी की बाइबिल की कहानी से तुलना की है तथा बज ने जिन समानताओं को उल्लिखित किया है, वे दंग करने वाली हैं। दोनों में व्यावहारिक रूप से एक समान चीज़ें हैं, जैसे अलौकिक गर्भधारण, दिव्य जन्म, जंगल में दुश्मन के खिलाफ संघर्ष, तथा मरने के बाद अनंत जीवन के लिए जी उठना।

इन ‘‘दोनों संस्करणों‘‘ के बीच मुख्य अंतर यह है कि बाइबिल की कहानियों को ऐतिहासिक माना जाता है, जबकि ओसीरिस/इसिस/होरस के चक्र को रूपक कथा। प्राचीन मिस्र के ओसीरिस/इसिस/होरस के आध्यात्मिक संदेश और ईसाई श्रुति का आध्यात्मिक संदेश बिल्कुल एक समान है। ब्रिटिश विद्वान ए.एन. विल्सन ने अपनी पुस्तक, जीसस में इस बात को रेखांकित करते हुए कहा हैः

इतिहास के ईसा और आस्था के मसीह दो अलग-अलग प्राणी हैं, जिनकी कहानियां बेहद अलग-अलग हैं। कौन पहला है यह निर्धारित करना काफी मुश्किल है, और इस प्रयास में दूसरे को अपूरणीय क्षति पहुंचने की संभावना है।

यहपुस्तकदर्शातीहैकि ‘‘इतिहासकेयीशु‘‘, ‘‘आस्थाकेयीशु‘‘, औरईसाईधर्मकेजड़सूत्रसभीप्राचीनमिस्रीहैं।यहांयहकामबगैरकिसी ‘‘अपूरणीयक्षति‘‘ केकियाजाएगाजैसाकिएएनविल्सनकीचिंताकरतेहैं, इसकेदोमुख्यकारणहैं, पहलायहकिसच्चाईअवष्यबतायीजानीचाहिए।दूसरा, ईसाईसिद्धांतोंकोउसकेमूलप्राचीनमिस्रीसंदर्भोंकेमाध्यमसेसमझनाईसाईधर्मकेआदर्शवादकोबढ़ाएगा।इसकिताबकेदोभागहैं।

पहला भाग दर्शाता है कि ‘‘इतिहास के यीशु‘‘ के विवरण पूरी तरह से मिस्र के फिरऔन, त्वत/तुत-अंख-आमेन के जीवन और मृत्यु पर आधारित हैं।

दूसरा भाग दर्शाता है कि ‘‘आस्था के यीशु‘‘ और ईसाई सिद्धांत सभी मिस्री मूल के हैं-जैसे शिक्षाओं/संदेश के मूलतत्व के साथ-साथ धार्मिक छुट्टियां भी।

मिस्र से मैंने अपने बेटे को बुलाया है, होशे के भविष्यवाणियों में से इस एक कथन में निर्विवाद विडंबना तथा गंभीर, गहरा और निर्विवाद सत्य छुपा है। वाकई यह एक गहरी विडंबना है।

आइए हम अपने दिल और दिमाग को खोलते हैं और उपलब्ध साक्ष्यों की समीक्षा करते हैं। सच्चाई एक पहेली है जिसमें तरह-तरह के पूरक टुकड़ों का एक संयोजन है। आइए हम टुकड़ों को सही स्थान, समय और क्रम में रखते हैं।

Languageहिन्दी
Release dateMay 8, 2019
ISBN9780463928639
ईसाईयत की प्राचीन मिस्री जड़ें
Author

Moustafa Gadalla

Moustafa Gadalla is an Egyptian-American independent Egyptologist who was born in Cairo, Egypt in 1944. He holds a Bachelor of Science degree in civil engineering from Cairo University. From his early childhood, Gadalla pursued his Ancient Egyptian roots with passion, through continuous study and research. Since 1990, he has dedicated and concentrated all his time to researching and writing. Gadalla is the author of twenty-two published internationally acclaimed books about the various aspects of the Ancient Egyptian history and civilization and its influences worldwide. In addition he operates a multimedia resource center for accurate, educative studies of Ancient Egypt, presented in an engaging, practical, and interesting manner that appeals to the general public. He was the Founder of Tehuti Research Foundation which was later incorporated into the multi-lingual Egyptian Wisdom Center (https://www.egyptianwisdomcenter.org) in more than ten languages. Another ongoing activity has been his creation and production of performing arts projects such as the Isis Rises Operetta and Horus The Initiate Operetta; to be followed soon by other productions. Check Egyptian Wisdom Center website regularly.

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    ईसाईयत की प्राचीन मिस्री जड़ें - Moustafa Gadalla

    भाग 1 : ऐतिहासिक मसीहा राजा

    अध्याय 1 : यीशु और इतिहास

    1.1 इतिहास के यीशु

    मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना के सुसमाचार (गॉस्पेल) उन घटनाओं के घटित होने के कई पीढ़ियों को बाद लिखे गए हैं, जिनमें वे बताते हैं कि यीशु का जन्म यहूदिया (जो भूमध्य सागर जॉर्डन—मृत सागर—अरब के बीच) में हेरोदेस महान (37-4 ई.पू.) के समय में हुआ, और जब पोंतियस पिलातुस (26-36 ई.) और उसके मुख्तारों के अधीन यहूदिया रोम का हिस्सा बना तो उन्हें दुख दिया गया और सूली पर चढ़ा कर मार डाला गया।

    मरकुस बाइबिल में वर्णित घटनाओं के प्रत्यक्षदर्शी नहीं थे। और न ही बाद में उनका अनुसरण करने वाले मत्ती, लूका या यूहन्ना ही प्रत्यक्षदर्शी थे। चर्च के प्रारंभिक दौर में मसीह के बहुत से सुसमाचारों के अस्तित्व में होने के बावजूद, काउंसिल ऑफ ट्रेंट ने 1546 ई. में नये नियम में मौजूद केवल चार यानी मत्ती, मरकुस, लूका और यूहन्ना के सुसमाचारों को ही स्वीकार किया था।

    => यीशु के जीवन और मृत्यु के बारे में इन सुसमाचारों की आम कहानी का समर्थन करने के लिए कोई पुष्ट प्रमाण मौजूद नहीं है। केवल इसकी निरंतर पुनरावृत्ति ने इसे एक स्थापित ऐतिहासिक तथ्य जैसा बना दिया है।

    1.2 सुसमाचार में प्रधान और इतिहास में गुमनाम

    बाइबिल में यीशु की कहानी के बावजूद: 1) न तो इस बात को प्रमाणित करने के लिए कहीं कोई भी पुरातात्विक साक्ष्य मौजूद है 2) न ही कोई रोमन रिकॉर्ड प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से यीशु के सुसमाचार की कहानी की गवाही देता है 3) और न ही उस दौर में यरूशलेम या सिकंदरिया में रहने वाले यहूदी लेखकों के लेखन से सुसमाचार की कहानी की पुष्टि होती है।

    बाद के दौर के कुछ यहूदी लेखकों के लेखन में यीशु से संदर्भ जोड़ने की कोशिशें मिलती हैं। हालाँकि इन प्रयासों को फर्ज़ी पाया गया, जिन्हें या तो उन ईसाइयों ने अंजाम दिया जो अपने प्रभु की ऐतिहासिकता को स्थापित करना चाहते थे, या फिर ईसाई धर्म के उन दुश्मनों ने जो धर्म पर हमला करने का मंसूबा रखते थे।

    बाइबिल के यीशु की ऐतिहासिक अनुपस्थिति को लेकर सबसे आम जवाब यह मिलता है कि वह एक साधारण व्यक्ति थे, न कि ऐसे कोई ताकतवर महत्वपूर्ण व्यक्ति जिन्हें इतिहास में दर्ज किया जाए। बाइबिल खुद इस तरह के दावों का खंडन करती है।

    क.यहूदिया का राजा हेरोदेस, बाइबिल के निम्नलिखित वचनों के अनुसार, यीशु के बारे में जानता था:

    1. जब यीशु का जन्म हुआ था

    …पूर्व से कई ज्योतिषी यरूशलेम में आकर पूछने लगे। कि यहूदियों का राजा जिस का जन्म हुआ है, कहां है?… (मत्ती, 2:1-2)

    2. राजा हेरोदेस से मसीह के बेथलहम में पैदा होने की भविष्यवाणी की गई थी।

    …क्योंकि तुझ (बैतलहम) में से एक अधिपति निकलेगा, जो मेरी प्रजा इस्राएल की रखवाली करेगा।  (मत्ती, 2:6)

    3. उनके जन्म की उक्त भविष्यवाणी को सुनकर, हेरोदेस चिंतित हो गया और इसलिए यूसुफ को ईश्वर के दूत ने आदेश दिया,

    उठ; उस बालक को और उसकी माता को लेकर मिस्र देश को भाग जा; और जब तक मैं तुझसे न कहूं, तब तक वही रहना; क्योंकि हेरोदेस इस बालक को ढूंढ़ने पर है कि उसे मरवा डाले। (मत्ती, 2:13)

    4. हेरोदेस इतना परेशान था कि उसने,

    …बैतलहम और उसके आस पास के सब लड़कों को जो दो वर्ष के, वा उससे छोटे थे, मरवा डाला। (मत्ती, 2:16)

    5. यीशु को यहूदी अधिकारियों द्वारा मौत की सजा सुनाए जाने के बाद, उन्होंने उन्हें पिलातुस को सौंप दियाः

    और यह जानकर कि वह हेरोदेस की रियासत का है, उसे हेरोदेस के पास भेज दिया, क्योंकि उन दिनों में वह भी यरूशलेम में था। (लूका, 23:7)

    बाद में पिलातुस ने मुख्य पुरोहितों को बताया,

    …जिन बातों का तुम उस पर दोष लगाते हो, उन बातों के विषय में मैंने उस में कुछ भी दोष नहीं पाया है; न हेरोदेस ने, क्योंकि उसने उसे हमारे पास लौटा दिया है… (लूका, 23:14.16)

    ख. बाइबिल हमें बताती है कि यीशु एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यक्ति थे:

    1. मत्ती 2:1-2 के अनुसार, अलग-अलग देशों के ज्ञानी जन उन्हें श्रद्धांजलि देने आए।

    2. मत्ती 2:2 के अनुसार वो राजा बनने के लिए पैदा हुए थे।

    3. वो अधिपति बनने के लिए पैदा हुए थे,

    …क्योंकि तुझमें से एक अधिपति निकलेगा… (मत्ती, 2:6)

    4. वो रखवाली करने के लिए पैदा हुए थे,

    …जो मेरी प्रजा इस्राएल की रखवाली करेगा। (मत्ती, 2:6)

    5. उन्होंने एक प्रभावी राजा के रूप में शासन किया जिसके बारे में इस पुस्तक के आगे आने वाले अध्याय, विभाजित राज में बताया जाएगा।

    ग. बाइबिल के निम्न वचनों के अनुसार यीशु बेहद दृष्टिगोचर थे, समूचे क्षेत्र के जनसमूहों को अपनी ओर खींच थे, और जबर्दस्त तहलका मचा रहे थे:

    1. दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है। …खजूर की, डालियां लीं, और उस से भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, कि "होशाना, धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है!" (युहन्ना, 12:13)

    एक मिस्री दृश्य जो बाइबिल के वचनों (पाम संडे) से मेल खाता है

    2.और यीशु सारे गलील में फिरता हुआ उन की सभाओं में उपदेश करता… और सारे सूरिया में उसका यश फैल गया; और लोग सब बीमारों को, …को उसके पास लाए… और गलील और… और यरदन के पार से भीड़ की भीड़ उसके पीछे हो ली। (मत्ती,

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