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वेदांतानुसार निज अनुभूति का तल कैसे प्राप्त करें? इसके लिये अधिकार संपन्न, ब्रह्मनिष्ठ अनेक महापुरुषों ने अपनी अनुभूति को शब्द दिये हैं। ऐसे ही एक महापुरुष हुये स्वनाम धन्य श्री लक्ष्मीधर कवि जी जिन्होंने अपनी सम्पूर्ण चेतना से जो अनुभव किया उसे 'अद्वैत मकरन्द' की संज्ञा दी। जिस प्रकार कोई भ्रमर किसी भी पुष्प के पराग को ग्रहण करके परम तृप्ति का अनुभव करता है। वैसे ही द्वैत भाव को तिरोहित कर अद्वैत में निष्ठ होना किसी भी साधक का आत्यंतिक लक्ष्य है।
वेदांतानुसार निज अनुभूति का तल कैसे प्राप्त करें? इसके लिये अधिकार संपन्न, ब्रह्मनिष्ठ अनेक महापुरुषों ने अपनी अनुभूति को शब्द दिये हैं। ऐसे ही एक महापुरुष हुये स्वनाम धन्य श्री लक्ष्मीधर कवि जी जिन्होंने अपनी सम्पूर्ण चेतना से जो अनुभव किया उसे 'अद्वैत मकरन्द' की संज्ञा दी। जिस प्रकार कोई भ्रमर किसी भी पुष्प के पराग को ग्रहण करके परम तृप्ति का अनुभव करता है। वैसे ही द्वैत भाव को तिरोहित कर अद्वैत में निष्ठ होना किसी भी साधक का आत्यंतिक लक्ष्य है।
वेदांतानुसार निज अनुभूति का तल कैसे प्राप्त करें? इसके लिये अधिकार संपन्न, ब्रह्मनिष्ठ अनेक महापुरुषों ने अपनी अनुभूति को शब्द दिये हैं। ऐसे ही एक महापुरुष हुये स्वनाम धन्य श्री लक्ष्मीधर कवि जी जिन्होंने अपनी सम्पूर्ण चेतना से जो अनुभव किया उसे 'अद्वैत मकरन्द' की संज्ञा दी। जिस प्रकार कोई भ्रमर किसी भी पुष्प के पराग को ग्रहण करके परम तृप्ति का अनुभव करता है। वैसे ही द्वैत भाव को तिरोहित कर अद्वैत में निष्ठ होना किसी भी साधक का आत्यंतिक लक्ष्य है।