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े र ररफ़्लेक्सलजि
व प्रजिबिंिं जवद्या
एवं
इसके कु छ उपचारों पर
संजिप्त जवचार
“िैं िीवन के अंजिि पड़ाव पर ििसूस करिा हूँ दक िैसे िैने िानव ज्ञान के जवशाल सिुद्र के दकनारे
खड़े िोकर भी अपने िीवन पयंि ज्ञान प्राजप्त के प्रयासों से के वल कु छ कं कड़ िी पा सका”
इस कथन से प्रेररि िोकर यि लेख सिस्त्राजदद जवशाल सिुद्री ज्ञान के िंथन से प्राप्त एक सूक्ष्ििय कि
को पाठकों िें िंाूँटने का एक नम्र प्रयास िै।
कोई भी ज्ञान िानविाजि के जलए लाभप्रद िभी िो सकिा िै, ििं वि नैजिक िूल्यों पर आधाररि िो।
इसजलए िि इस लेख का श्रीगिेश प्रजसद्ध संस्कृ ि प्राथथना से करिे िैं।
इसका अथथ िै - सभी लोग सुखी रिें, सभी लोग स्वस््य रिें, सभी दूसरो के अच्छे गुिों को देखें ,
कभी दकसी पर दुख न आए।
ऍक्युप्रश
े र ऍक्युप्रश
े र जवद्या का संजिप्त इजििास :
‘एक्यु’ शदद का अथथ िै ‘सुई’ परन्िु ऍक्युप्रेशर प्रजिबिंिं जवद्या का अथथ िै िथेली और िलवे के ऊपर,
नीचे एवं दकनारे पर जस्थि कु छ जवजशष्ट जिंन्दुओं पर जनयंजिि दिंाव का प्रयोग करना। ऍक्युप्रेशर
प्रजिबिंिं जवद्या भारि िें पाूँच ििार वर्थ पूवथ जवकजसि हुई जिसका जववरि सुश्रुि संजििा और आयुथवेद
िें जिलिा िै। ककिु भारिवासी यि जवद्या को भूल गए, परं िु िंौद्ध जभिु इस ज्ञान को श्रीलंका एवं
ित्पश्चाि् चीन और िापान ले गए। उन देशों िें यि जवद्या ऍक्युपंक्चर या शैत्सु रूप िें जवकजसि हुआ।
सोलिवीं शिाददी िें उत्तर अिेररका का रे ड इं जडयंस ऍक्युप्रेशर ररफ़्लेक्सलजि व ऍक्युप्रेशर प्रजिबिंिं
जवद्या पद्धजि का प्रयोग करिे थे । िंीसवीं शिाददी िें अिेररकी जचदकत्सकों ने इस जवद्या का पुन:
व्यापक अनुशीलन एवं परीिा-नीररिा दकया और इस जवद्या का जवकजसि दकया। ऍक्युप्रेशर प्रजिबिंिं
जवद्या अन्य प्राकृ जिक उपचारों के सजिि जवश्व स्वास््य संगठन द्वारा िान्यिा प्राप्त िै , जिससे िानव का
सावथि (शारीररक एिंं िानजसक) स्वस््यिा व सुस्वास््य को िंनाया िा सकिा िै।
ऍक्युप्रश
े र जवद्या का जसद्धांि :
ईश्वर/प्रकृ जि ने िानव शरीर को एक जवजशष्ट अंिथजनजिि रसायजनक प्रदिया के साथ िंनाया िै , जिससे
शरीर रोगों के उपचार िेिु िंाह्य कारिों पर आधाररि न रिे। िानव शरीर िे अम्ल-िार आधार और
इसके दिया-प्रजिदिया की विि से एक जवशेर् आंिररक िीवन िंैटरी िोिी िै, िो शरीर के अन्दर िैव
ऊिाथ या िैव जवद्युि की सूक्ष्ि िरं गों को उत्पन्न करिी िै। यि िैव जवद्युि या ‘चेिना’ िाथ और पैर की
उगंली के अग्र भाग से प्रारम्भ िोकर दस जवजशष्ट रे खाओं या ‘िेरीजडयंस’ द्वारा पूरी िानव शरीर को
ढ़किे हुए िजस्िष्क िक िािी िै, और िानव शरीर के पाूँच िूल आधार या ‘पंचभूि’ पृ्वी, िल, अजि,
वायु एिंं आकाश को जनयंजिि करिी िै। िैव जवद्युि इस प्रकार िानव शरीर के सभी कायों (शारीररक
एवं िानजसक) के जनयंिि व सिंवय करिी िै। िि पूिथिया स्वस््य रििे िै ििं िक जिंना ुककावट के
यि िैव ऊिाथ ििारे शरीर िे सिििा से प्रवाजिि िोिी रिे। ििं िैव ऊिाथ कु छ कारिों से शरीर के
दकसी अंग िक ठीक प्रकार से निीं पहुूँच पािी िै, िैसे की जवर्ैले पदाथो के ििाव के कारि, िो िंैठे-
िंैठे काि करने की विि से या असािान्य रिने की जस्थजियों या पररजस्थजियों की विि से िोिा िै, ििं
वि अंग िंीिार िो िािा िै और ििें िंीिारी िो िािी िै।
िानव शरीर की दस िेरीजडअन्स पर लगभग 900 ऍक्युप्रेशर जिंन्दु िै जिनको दिंाया (ऍक्युप्रेशर) या
सुईदािं (ऍक्युपंक्चर) कर िैव ऊिाथ के प्रवाि को िेरीजडअन्स िें िंढ़ा सकिे िै। ऍक्युप्रेशर प्रजिबिंिं
जवद्या िें िानव शरीर के के वल िथेली, िलवे और कान के सािने, पीछे और दकनारे अिंजस्थि
ऍक्युप्रेशर जिंन्दुओं िोिे िै िो शरीर के जवजशष्ट अंगों के प्रजिजिंम्िं जिंन्दुओं की िरि कायथ करिे िै। इन
जिंन्दुओं को दिंा कर िैव ऊिाथ के प्रवाि को िेरीजडअन्स िें िंढ़ा सकिे िै।
ििारी िथेजलयाूँ और िलवे ििारे शरीर का जसर से शुुक िोिे हुए नीचे िेुकदण्ड के सिंसे नीचे भाग िक
का वास्िजवक प्रजिबिंिं िै। ििारे शरीर िें िथा सभी प्रिुख अंगों के प्रजिबिंिं जिंन्दु ििारी िथेजलयों
और िलवों पर अंगों की सापेि जस्थजि एवं िि के अनुसार जस्थि िोिे िै। इस प्रकार हृदय एवं जिल्ली
(स््लीन) का प्रजिजिंम्व जिंन्दु िंायें िथेली एवं िलवे पर िोिा िै, जपत्ताशय (गलदलाडार), जिगर
(जलवर) और उण्डु पुच्छ (अपेंजडक्स) जिंन्दु दायें िाथ एवं िलवे पर िोिे िै। गुदाथ (दकडनी), अिाशय
(्यांिीयास) एवं िूिाशय के जिंन्दु दोनों दाएं एवं िंाएं िथेली एवं िलवे पर िोिे िै। आूँख , गला, कान,
नाक, हृदय, फे फड़ा (लांस), अिाशय (स्टिाक) के जिंन्दु िथेली/िलवे के ऊपर भाग िें िोिे िै , और
िेुकदण्ड, िजस्िष्क िंजिका (िेड नाभथ), दृजष्ट िंजिका
(अपरटक नाभथ) के जिंन्दु िथेली/िलवे के पीछे भाग िें िोिे िै। यदद ििारे शरीर का एक जवशेर् अंग
अस्वस्थ िोिा िै, िो िथेली/िलवे पर जस्थि सम्िंंजधि जवशेर् जिंन्दु नरि/कििोर पड़ िािा िै अथाथि
थोड़ा कष्टप्रद िोिा िै। यि कष्ट िंहुि कि िीव्रिा का िो सकिा िै और के वल जिंन्दु का ऊपरी जनयजन्िि
दिंाव द्वारा िी अनुभव दकया िािा िै।
ििं कु छ कारिों से शरीर के िथेली/िलवे के कोइ प्रजिजिंम्िं (ऍक्युप्रेशर) जिंन्दु िें जवर्ैले पदाथथ या
टजक्सन से िुर्ार कि के िंरािंर् दिस्टल (या स्फरटक) िंन िािे िै। ििं िेरीजडअन्स द्वारा िैव ऊिाथ के
प्रवाि उस जिंन्दु का संिंंजधि अंग िक ठीक प्रकार से निीं पहुूँच पािी। ििं वि अंग िंीिार िो िािा िै।
उस जिंन्दु पर िंार-िंार जनयजन्िि दिंाव से उसका दिस्टल टु ट िािा िै और रक्त प्रवाि के साथ दकड्नी
िें पहुूँचिा िै एवं ित्पश्चाि िूिाशय से जनकाल िािा िै। दिंाव से दिस्टल टु टने या फाटने का सिय
ििें कष्ट अनुभव िोिा िै। इससे िंीिार अंग िे िैव ऊिाथ के प्रवाि स्वाभाजवक िो िािा िै और वि अंग
ठीक िो िािा िै।
यदद सभी ऍक्युप्रेशर जिंन्दुओं पर एक सिान जनयंजिि दिंाव डाला िाए िो सम्िंंजधि कििोर अंगों के
जिंन्दुओं पर ददथ अनुभव िोगा। इस प्रकार कोई भी िंहुि आसानी से िथेली एवं िलवे के जवजभन्न
प्रजिबिंिं जिंन्दुओं को व्यवजस्थि रूप से दिंाकर अपने रोगों के िंारे िें पिा लगा सकिा िै और जनयजिि
रूप से नरि/कष्टदायक जिंन्दुओं को दिंाकर अपने रोगों को दूर कर सकिा िै। ऍक्युप्रेशर जिंन्दुओं पर
जनयंजिि दािं द्वारा शरीर िे िैव -ऊिाथ या िैव-जवधुि प्रवाि जनयजिि िोिा िै, जिससे शरीर के
सम्िंजधि प्रिुख अंग उत्तेजिि िोिा िै, आक्सीिन का प्रवाि िंढ़िा िै एवं जवर् जनकल िािा िैं।इस
प्रकार ऍक्युप्रेशर प्रकृ जि का वि जवज्ञान िै िो ििें िानव शरीर की अन्िनिहनजिि प्रदिया द्वारा िैव ऊिाथ
के प्रवाि को प्रभाजवि करके स्वास््य को िंेििर करना जसखािी िै।
ऍक्युप्रेशर प्रजिबिंिं जवद्या आि आदिी एवं िंच्चों द्वारा अपनाएं िाने के जलए जिंलकु ल सरल पद्धजि
िै। जनयजिि प्रयोग से िानजसक एवं शारीररक स्वास््य िंेििर िोिा िै। िोम्योपेथी की िरि ऍक्युप्रेशर
प्रजिबिंिं जवद्या िंच्चों, िजिलाओं एवं पुरूर्ों के जलए अत्याजधक लाभकारी िै, िो दकसी िरि का
व्यसन निीं करिे। इसे ऐलोपेथी सजिि अन्य जचदकत्सा पद्धजियों के सिपूरक पद्धजि के ुकप िें प्रयोग िें
लाई िा सकिी िै।
ऍक्युप्रश
े र जवद्या का प्रयोग :
ऍक्युप्रेशर िलवे या पैर पर ज्यादा अच्छा िोिा िै क्योंदक िलवे का िे ि िथेली के िेि से ज्यादा िोने
के कारि प्रजिजिंम्िं जिंन्दु िलवे पर िंहुि स्पष्ट ददखिे िै। यघजप पैरो को ऍक्युप्रेशर के पिले और िंाद
िें कु छ देर आराि देना चाजिए, यदद ऐसा संभव निी िो िो कु छ जवशेर् िाजलश द्वारा िंिुकाओं (नभथ)
को शांि दकया िा सकिा िै। ऍक्युप्रेशर दकसी भी सुजवधािनक आसन चािे िंैठे हुए, लेटे हुए या खड़े
हुए और यिाूँ िक दक चलिे हुए भी दकया िा सकिा िै , परं िु प्राय: खाली पेट करना चाजिए। इसजलए
प्राि: व सांय काल िे करना उपयोगी िोिा िै। ऍक्युप्रेशर िुख्य भोिन से पूवथ आधे घंटे व िंाद िें एक
घंटे िक निीं करना चाजिए। दिंाव सिंसे पिले सोलर ्लेजक्स के प्रजिजिंम्िं जिंन्दु पर डालना चाजिए।
सोलर ्लेजक्स ििारे उदर के िध्य िे हृदय, फे फड़ा (लांस) और पेट िेि के िंीच िोिा िै।
सोलर ्लेजक्स के िंाद इं डोिाइन ग्लेंड जिंन्दुओं , दफर नरि (ददथ िै) जिंन्दुओं और अंि िें पुन: सोलर
्लेजक्स जिंन्दु को दिंाना चाजिए। आयुवेद िें िथेली व िलवे पर् सोलर ्लेजक्स जिंन्दु भगवान ‘गिपजि’
या ‘नारायि’ के नाि पर िै िो उदर के नीचे के सभी अंगों की स्वास््य की रिा करिा िै। जनयजिि
रूप से इसे दिंाने से िानजसक एवं शारीररक संिुलन व आराि िंना रििा िै। ऐसे िी िथेली िें सिंसे
ऊपर वाला और जनम्निि िध्य जिंन्दुओं का नाि देवी ‘लक्ष्िी’ और ‘सरस्विी’ के नाि पर िै, जिसके
दिंाने से ििश: सुस्िी/आलस्य भागिा िै और स्िरिशजक्त िें सुधार िोिा िै। शास्त्र अनुसार –
सभी इं डोिाइन ग्लेंड के प्रजिजिंम्िं जिंन्दु यथा सोलर ्लेजक्स, जपटू इटरी, पाइजनयल, ऐड्रेनल, थायिस,
थायराइड, पैराथायराइड, ्यांिीयास और काि ग्रंजथ जनयजिि रूप से दिंाना चाजिए जिससे स्वास््य
अच्छा रिेगा। अन्य प्रिुख जिंन्दु – िजस्िष्क, ह्रदय, लांस, जलवर, दकडनी, पेट, िूिाशय, अपेंजडक्स,
कोलन, जलम्पट्ट ग्रंजथ, आूँख, कान, आदद को ददन िें एक िंार अवश्य दिंाना चाजिए। यि लेख के साथ
युक्त रं गीन छजवयों (अिेररकन पद्धजि) से ऍक्युप्रश
े र जिंन्दुयों को पिचान सकिे िै। यदद कोई अंगों के
प्रजिछजव जिंन्दु इन छजवयों िें निी िै िो ििं श्याि-श्वेि छजवयों (भारिीय पद्धजि) से उन जिंन्दु को
पिचान सकिे िै।
जनयजिि टिलना (दौड़ने और भारी कसरि/खेलों से जभन्न) अनेक ऍक्युप्रेशर जिंन्दुओं को उत्तेजिि करिा
िै। इससे शरीर िें अजधक आक्सीिन और (शरीर के अन्दर धीर् दिन दिया से कि CO2 िंनने के
कारि) कि जवर् ििा िोिा िै, िो भारी कसरि और दौड़ने से िोिा िै। इसजलये अच्छा स्वास््य
िंनाये रखने के जलए टिलने को सिंसे अच्छी कसरि और सिंसे अजधक उपयोगी किा गया िै।
वृद्ध व्यजक्त, अपनी कु सी पर िंैठे हुए, अपने िलवों को दरी-पट्टी पर रखे लकड़ी के खांचेदार पैर के
रोलर पर घुिा सकिे िै और पाूँच जिनट िक प्रत्येक पैर को जििना दिंाव दे सके , दे सकिे िैं। इससे
उनके पाचन िंि, गुदाथ, जिगर, फे फड़ा आदद दियाशील रिेगें। इस िरि के लकड़ी के खांचेदार यंि िाथ
से उपयोग करने के जलए भी उपलदध िैं।
ऊूँची िील वाले च्पल व िूिे पिनने से शरीर के प्रिुख अंगों िें खरािंी या कभी कभी लाइलाि
नुकसान करिे िै। इससे कई िरि की गंभीर िंीिाररयाूँ िो िािी िै , िो दवाओं द्वारा भी ठीक निी
िोिी। अि: ऊूँची िील वाले च्पल व िूिे निीं पिनने चाजिए। इसी प्रकार छोटे/कसे हुए िूिे कभी
कभी पैर की कु छ ग्रंजथयों/जिंन्दुओं को िंहुि अजधक दािं देिे िै। शरीर के प्रिुख अंगों की दियाकलाप
को जिंगाड़ देिे िै। अि: इन्िें भी निीं प्रयोग करना चाजिए। इसे लेखक ने स्वयं अनुभव दकया िै।
ऍक्युप्रेशर च्पल पिनकर भी दस जिनट से अजधक निीं टिलना चाजिए।
पैराथायराइड ग्रंजथ के अवजस्थजि थायराइड ग्रंजथ के अन्दर िै। यि ग्रंजथ रक्त िें क्यालजसयाि व
फसफरास के पररिाि जनयंिि करिे िै। इस ग्रंजथ के गड़वड़ िोने से रक्त ििा, शरीर िे बखचाव, िांस
पेशी व स्नायू के दिया-कलाप िें िुजश्कल िोिा िैं। ्यांिीयास ग्रंजथ के अवजस्थजि ििारे पेट के जपछे दो
भाग िें िै। िंड़ा भाग िंांये िरफ िै। यि ग्रंजथ खाद्य नाली (अन्ि) िें ्यांिीयारटक रस उत्पन्न करिे िै
िो दक खाद्य के स्टाचथ को चीनी, फ्याट को फ्यटी आजसड, प्ररटन को आजिनो आजसड िे िंदलिे िै एवं
खाद्य िज़ि करने सिायिा करिे िै। यि ग्रंजथ इनसुजलन उत्पन्न करके रक्त िें चीनी की िािा को
जनयंिि करिे िै। इस ग्रंजथ के गड़िंड़ िोने से डायािंेरटस, िंदिििी एवं िाइपोग्लजसजिया िोिे िैं।
थायिस ग्रंजथ के अवजस्थजि थायराइड ग्रंजथ का नीचे छाजि के पीछे िै। यि ग्रंजथ शरीर के रोग प्रजिरोध
िििा एिं िंच्चों के जवकास जनयंिि करिे िै।
ऐड्रेनल ग्रंजथ के अवजस्थजि दकडनी के उपर िै। जपटू ईटरी ग्रंजथ, यि ग्रंजथ को जनयंिि करिे िै। इस का
काि अन्य ग्रंजथयों के साथ सम्िंजधि िै। यि ग्रंजथ ििारे हृदय के पेशी, खाद्य ििि के पेशी, रक्त िें
चीनी, सोजडयि एवं खजनि पदाथथ के िािा, ििारा श्वास लेना, लांस िक श्वासनाली के जवश्राि
इत्यादद प्रभाजवि करिे िै एवं ििें आत्िजवस्वास एवं लड़ाई के स्पृिा िगािे िै। इस ग्रंजथ का गड़वड़
िोने से शरीर िें प्रोदाि/ज्वाला, अिंसाद/क्लांजि आरथाराइरटस, एसथेिा, एलानिहि, लो-दलडप्रेशर,
पेजशयों के जवशृंखला इत्यादद िो सकिा िैं। काि ग्रंजथयों (पुुकर्ों के प्रसस्रेट, बलग व अण्डकोर् एवं
जस्त्रयों के जडम्िंकोर्, इउटेरास व फे लोजपयान रटउिं) िें कु छ िरिोन उत्पन्न करिे िै िो शरीर का वृजद्ध,
व्यजक्तत्व का जवकास, काि शजक्त, प्रिनन िििा व िान, पुनररज्जीवन िें सिायक िोिा िै।
कायाथलय और कम््यूटर पर काि करने वालो को िेरूदण्ड की सिस्याओं – पीठ ददथ, गदथन ददथ आदद से
िंचने के जलए जनयजिि रूप से अगूूँठे और िथेली के िंाह्य भाग को दिंाएं या िलवे को िंड़े अगूूँठे से
लेकर एड़ी िक दिंाएं।
यािा के दौरान अकस्िाि अस्वस््य िोने पर िथेली/िलवे के सोलर ्लेजक्स जिंन्दुओं को कु छ जिनट के
जलये रूक रूक कर दिंाने से िंहुि आराि जिलिा िै।
डाइिंीरटस (िधुिेि) ्यांिीयास ग्लेंड (अिाशय) के काि न करने के कारि या िनाव के कारि िोिा
िै। ििं शक्कर को पचाने के जलए पयाथप्त इं सुजलन निीं िंनिी और ििं दकसी कारिवश पयाथप्त ग्लुकोि
रक्त से जनकल कर सेरेब्रोस्पाइनल द्रव िे निीं िािी िै, जिससे रक्त िें ग्लुकोि की िािा िंढ़ िािी िै।
इस कारि जलम्पट ग्लेंड बिंदु पर दिंाने से ददथ ििसूस िोिा िै , ऐसे रोगी दकडनी, ्यांिीयास, लीभार,
पेट, आंि, िूिाशय, एड्रेनल व जलम्पट ग्लेंड बिंदुओं को दिंाएं। यि भी आवश्यक िै दक सभी भोिन
चिंा चिंा कर खाएं एवं अजधक से अजधक पेय पदाथथ ले , जिससे लार अजधक िािा िें जनकले और
उजचि पाचन िो सके ।
ज्वर (िंुखार), कैं सर, जसरददथ / िाइग्रेनि और एलािी एक या अजधक िंीिाररयों के लिि िै, जिसके
जलए िथेली/िलवे के सभी बिंदुओं को उपचार से पिले एक एक कर दिंाकर पिा लगाना चाजिए दक
ददथ के सिी बिंदुओं कौन-कौन से िैं। उसी के अनुसार उन बिंदुओं को और इं डोिाइन ग्लेंडस, दकडनी,
लीभार एवं ्यांिीयास के बिंदुओं को जनयजिि दिंाना चाजिए।
ठोढ़ी को िंार िंार नीचे की ओर कु छ जिनट दिंाने से , ठोढ़ी के िंीच वाले जिस्से को दिंाने से , पेट को
िंार िंार फै लाने/ सुकोड़ने पर, गुदा को िलत्याग से पिले और िंाद िें (सािंुन से या िेल िें भीगी
ऊंगली से) साफ रखने पर कदि दूर करने िें सिायिा जिलिी िै और िंावसीर (पाइलस) की सिस्या से
िंच सकिे िैं।
जनम्न रक्त दािं अिाशय के अजधक काि करने की विि से िोिा िै, जिससे रक्त और सेरेब्रोस्पाइनल द्रव
िें ग्लुकोि का स्िर कि िो िािा िै। इससे िजस्िष्क िें ऊिाथ का प्रवाि कि िो िािा िै और िोटर
न्यूरोंस शरीर को कििोर िंना देिा िै। ऐसे रोगी जपजनयल, िूिाशय, जिगर, एड्रेनल, अिाशय, काि
बिंदुओं को दिंाएं।
उच्च रक्त दािं सेरेब्रोस्पाइनल द्रव िें सािान्य लवि की अजधकिा या िनाव से िोिा िै। ििं िीसरी
वेंरीकल के िंाह्य द्वार पर जस्थि छोटे वाल्व िे छोटे िंाल की िरि सेल कड़े िोकर द्रव का प्रवाि कें द्रीय
स्नायु संस्थान िें अवरूद्ध करिे िैं। जिससे िीसरी वेंरीकल िें सेरेब्रोस्पाइनल द्रव का दािं िंढ़ िािा िै ,
फलस्वरूप पाइनल ग्लेंड को नुकसान िोिा िै या वि काि करना िंंद कर देिी िै। ऐसे रोगी रूक रूक
कर पाइनल, एड्रेनल, अिाशय, थायराइड और पैराथायराइड, जपटू टरी, प्रोस्टेट, गभाथशय के बिंदुओं को
िथेली एवं िलवे िें दिंाएं।
घुटने िें ददथ के जलए, रूक रूक कर लगभग एक जिनट दोनों पैरों की
दूसरी व चौथी अंगुली के नीचे वाले जिस्से को( दकसी भी िरफ से) ,
पैर की चार रे खाओं के सभी बिंदु (ऊपर की ओर) उं गजलयों की चार
संजध के स्थान से शुुक करके पैर के अंि िक, और दोनों घुटनों के अंदर
िंीच के बिंदु और िंािरी नीचे वाले स्थान के बिंदुओं को दिंाएं।
ठोढ़ी को िंार िंार नीचे की ओर कु छ जिनट दिंाने से , ठोढ़ी के िंीच वाले जिस्से को दिंाने से , पेट को
िंार िंार फै लाने/सुकोड़ने पर, गुदा को िलत्याग से पिले और िंाद िें (सािंुन से या िेल िें भीगी
ऊंगली से) साफ रखने पर कदि दूर करने िें सिायिा जिलिी िै और िंावसीर की सिस्या से िंच सकिे
िैं।
चक्कर आना / साइनस दोनों भौि के िंीच के बिंदु को दिंाएं। दोनों अगूठ
ूँ ों
िें िेि ददथ के अंदर व िंािरी दकनारे , संिंंजधि पैर के अगूूँठे
और दोनों कान के बिंदुओं को दिंाएं।
साूँस उखड़ना एवं िूच्छाथ ह्रदय, िजस्िष्क, िानजसक िंजिका, जपटूटरी, पाइनल, जसर िंजिका जिंन्दुओं को
दिंाएं।
अचानक उच्च रक्त दािं दोनों कानों के छेदों को दोनो िाथ की छोटी वाली ऊंगजलयों से रूक रूक कर दो-
िीन जिनट दिंाना या जझझोडना चाजिए।
जिरगी / दौरा दोनों कानों के नीचे वाले जिस्से, नाक के नीचे िध्य
जिंन्दु, िानजसक िंजिका, सभी इं डोिाइन ग्लेंड +
अंजिि दो ऊंगजलयाूँ (दोनों िाथ/पैर) की दिंाएं।
आूँख की सिस्या
टाूँगों, एड़ी, जनिम्िं, पैर अगूूँठे एवं िथेजलयों के िंािरी िेि को दिंाएं।
लड़खड़ाना, जपण्डली िें पैर िें िंड़े अगूूँठे से एड़ी िक, अगूठ
ूँ े से पिली
शून्यिा एवं ऐंठन ऊंगली के िंीच रोक पर के न्द्र िक, जसयेररक
िंजिका रेखा के सभी बिंदु, टखना के िंािरी
िरफ, िंड़े अगूूँठे के पास वाली िीन ऊंगजलयों
को दिंाना या िाजलश करना।
गदथन और कं धे दे ददथ के
जलए चौथी पंजक्त के सभी
जिंन्दु एवं िाइगेन एवं
सभी पंजक्तयों के जिंन्दुओं
को दिंाएं।
साइरटका के जलए दोनों िलवों के
अन्दर व सभी ओर के िें सभी
जिंन्दुओं को दिंाएं।
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From Marine Line East Rail station (W. R.) walk towards Lohachar, see the
Pharmecy on the left side near First Traffic Signal.
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