Sie sind auf Seite 1von 5

BAGLA DASHAK

बगला दशक

बगला दशक
( तुत ‘बगला-दशक’ तो म पाँच म बगला व या के सुख-सा य और सु-शी फल-दायी ह । इस
म म एक बगला के ‘म दार’ म नाम से स है ।
उ त तो म म तो पाँच ह, पर उनके वषय म म ो ार तथा फल-समेत दस प य होने के कारण
‘बगला-दशक’ नाम दया है ।)
सुवणाभरणां देवीं, पीत-मा या बरावृताम् ।
मा - व यां बगलां, वै रणां त भनीं भजे ।।
म सुवण के बने सवाभरण पहने हुए तथा पीले व और पीले पु प (च पा) क माला धारण करने वाल
एवं साधक के वै रय का त भन करने वाल मा - व या- व पा बगला व या भगवती को
भजता हूँ ।

बगला के मूल व या- व प का ववेचन


(१)
यि मं लोका अलोका अणु-गु -लघवः थावरा जंगमा च ।
स ोताः सि त सू े मणय इव वृहत्-त वमा तेऽ बरं तत् ।।
पी वा पी यैक-शेषा प र-लय-समये भा त या व- काशा ।
त याः पीता बराया तव जन न ! गुणान् के वयं व तुमीशाः ।।
हे जन न ! िजसम ये लोक, जो य द खने यो य ह और अलोक, जो अ य – न द खने यो य ह (ऐसे
बहुत से पदाथ और जीवा द त व ह, जो मानव ि ट म नह ं आते, पर तु अव यमेव अपनी स ता
सू म-से-सू म रखते ह ), वे अणु-से-अणु, लघु छोटे, गु बड़े, थूल- प वाले थावर तथा जंगम, ि थर
और चर- व प वाले -सभी ओत- ोत ह, परोए हुए ह । जैसे सूत म मनके परोए हुए ह । वह सबसे बड़ा
त व अ बर – आकाश – महाकाश-त व है । इस महाऽऽकाश-त व म ह यह सब कुछ प च
मा ड अनेकानेक या त हो रहे ह । यह भावाथ हुआ ।
उस महा-महान् अ बर त व को महा- लय-समय म पी-पीकर केवल एक-मा आप व- काश से शेष
रहती ह । वयं केवल आप ह काशमान रहती ह । उस ‘पीता बरा – पीतम् अ बरं यथा सा’ – पी
लया है महाऽऽकाश-त व िजसने, ऐसी महा मूल-माया- व पा भगवती बगला ! आपके गुण-गान करने
म हम कौन समथ हो सकते ह ! ।
(२)
आ यैि याऽ रैय व ध-ह र- ग रशीं ीन् सुरान् वा गुणां च,
मा ाि त ोऽ यव थाः सततम भदधत् ीन् वरान् ीं च लोकान् ।
वेदा यं यणमेकं वकृ त- वर हतं बीजम वां धानम्,
मूलं व व य तु य व न भर वरतं वि त त मे यो यात् ।।
हे मातः ! पीता बरे ! भगव त ! अकार आ द तीन वण से ‘ णव’ ॐ के व लेषण म – अ + उ + म् –
ऐसे तीन अ र ह । इन तीन अ र म मा- व णु-महेश इन तीन देव को और तीन (स व, रजः,
तमः) गुण क एवं तीन मा ाओं एक- व- मा ाओं को तथा उदा त, अनुदा त, व रत – इन वर को
तथा तीन अव थाओं (जा त, व न, सुषुि त) को और तीन लोक (भूः, भुवः, वः) को नर तर
बतलाया हुआ यह वेद का आ य वण ॐ-कार ( णव) तीन अ रवाला वकृ त-र हत न वकार आपका
बीज है । यह आपको अपनी तीन वण- व नय से उ त सभी तीन-तीन देव , गुण , अव थाओं, मा ाओं,
वर और लोक म सव- धान-त व व व का मूल-तुर य त व नर तर बतलाता है । वह मुझे ी
दान करने वाला हो ।
(३)
सा ते रा तेन वामा ण वधु-कलया रािजते वं महे श !
बीजा तः था लतेव वलस स सदा सा ह माया ि थरेयम् ।
ज ता याताऽ प भ तैरह न न श ह र ा त-व ावृतेन ।
श ून् त ना त का तां वशय त वपदो हि त व तं ददा त ।।
हे महे श ! भगव त बगले ! ‘वामा ण’ बाँएं ने म अथात् ईकार म, ‘ वधु-कलया’ (रा तेन रािजते सा ते)
‘रा ते’ लकार से और ‘ वधु-कलया’ च - ब दु अनु वार ब दु से वरािजत, ‘सा त’ हकार म अथात्
ईकार म लकार मले हुए और अनु वार-यु त हकार से “ ं” बनता है । इसे ‘ि थर-माया’ कहते ह ।
यह बगला का मु य बीज है । इसम हे महे श ! आप बीज म लता क तरह सदा वलास करती हो । वह
‘ि थर-माया’ आपका एका र मु य म है । यह यान और जप करने से भ तो, साधक को, जो दन
म रात म ह र ा (ह द ) से रंगे व पहने हुए, ह द क माला से, पीतासन पर बैठे इसे याते-जपते ह
या जपते आपका यान करते रहते ह, तो यह ‘ि थर-माया’ महा-म उन साधक के श ुओं को
ति भत करते है, मनोहर का म नय को वशीभूत करता है, वपि तय को दूर करता है और मन-माना
धन दान करता है । अथात् सभी वाि छत दान करता है ।
(४)
मौन थः पीत-पीता बर-व लत-वपुः केसर यासवेन ।
कृ वाऽ त त व-शोधं क लत-शु च-सुधा-तपणोऽचा वद याम् ।
कुवन् पीतासन थः कर-धृत-रजनी- ि थ-मालोऽ तराले ।
यायेत् वां पीत-वणा पटु-युव त-युतो ह ि सतं कं न व देत् ।।
हे पीता बरे भगव त ! आपका साधक मौन धारे हुए, यहाँ ‘मौन’ से अ या य बातचीत करने, कसी दूसरे
से बोलने का नषेध समझना चा हए, वयं साधक तो यान-म ा द उ चारण कर ह , ऐसा संकेत है ।
पीले आसन पर बैठ, पीले व पहन, अपनी चतुर शि त के साथ केसर आसव से त व-शोधन कर
अ तयाग म यान-पूजा कर उसी शो धत केसर के आसव से भगवती को तपण अपण कर (पुनः
आवरण-स हत पूजा पूण कर) ह र ा- ि थ क माला हाथ म ले उससे जप करता है (सशि त ह जप
करता है) और आप पीत-वण का यान करता है, तो न चय ह वह कौन-सा मनोरथ है, जो उसे ा त
न हो । अथात् वह समथ साधक सभी अभी ट पा सकता है । यह योग भी अनुभूत ह है ।
(५)
व दे वणाभ-वणा म ण-गण- वलस ेम- संहासन थाम् ।
पीतं वासो वसानां वसु-पद-मुकुटो तंस-हारांगदा याम् ।
पा ण यां वै र-िज वामध उप र-गदां व तीं त परा याम् ।
ह ता यां पाशमु चैरध उ दत-वरां वेद-बाहुं भवानीम् ।।
सुवण-से वण (काि त, प) वाल , मणी-ज टत सुवण के संहासन पर वराजमान और पीले व पहने
हुई (पीले ह ग ध-मा य-स हत) एवं ‘वसु-पद’-अ ट-पद-अ टादश सुवण के मुकुट, कु डल, हार, बाहु-
ब धा द भूषण पहने हुई एवं अपनी दा हनी दो भुजाओं म नीचे वै र-िज वा और ऊपर गदा धारण करती
हुई; ऐसे ह बाएँ दोन हाथ म ऊपर पाश और नीचे वर धारण करती हुई, चतुभुजा भवानी भगवती को
‘व दे’ णाम करता हूँ ।
(६)
ष - ंश -वण-मू तः णव-मुख-हरां - वय तावक न-
च पा-पु प- याया मनुर भ-मतदः क प-वृ ोपमोऽयम् ।
मा ं चा नवा य भुजग-वर-गदा-वै र-िज वा -ह ते !
य ते काले श ते जप त स कु तेऽ य ट- स ः व-ह ते ।।
पाश, वर, गदा और वै र-िज वा हाथ म धारण करने वाल ! आपका णव-मुख वाला, ॐ-कार िजसका
मुख है -आ द है । और ‘हरां - वय’ – ठ- वय-’ वाहा’ अ त म पद है, ऐसी छ तीस वण क मू त-
माला; च पा के पु प को अ धक य समझनेवाल आपका यह महा-म क प-वृ के समान
सवाभी ट फल देने वाला है । यह अ नवाय, िजसका कोई तीकार नह ं है ऐसा, मा है । जो साधक
इसे ‘ श त’ काल म -च -तारा द अनुकूल समय म जपता है (आपक स बधान अचना के साथ), वह
आठ स य को अपने अ त-गत कर लेता है ।
(७)
माया या च व-ठा ता भगव त ! बगला या चतुथ - न ढा ।
व यैवा ते य एनां जप त व ध-युत त व-शोधं नशीथे ।
दारा यः प चमै वां यज त स ह शा यं यमी ेत तं तम् ।
वाय त- ाण-बु ीि य-मय-प ततं पादयोः प य त ाक् ।।
हे भगव त ! ‘माया या’-माया ‘ ं’ आ द म है िजसके, ऐसी और ‘चतुथ - न ढा’ – चतुथ वभि त म
बैठ हुई ‘ वाहा’ – यह ‘आ या’ नाम अथात् ‘बगलायै’; व-ठा ता – व-ठः ‘ वाहा’ है अ त म िजसके
अथात् ‘ ं बगलायै वाहा’ – य स ताण म हुआ । यह भी व या ह है । वाहा त म ‘ व या’
कहलाते ह । जो मानव आगम- वधान-कुल और आ नायो त प त से अ -रा म त व-शोधन आ द
पूणकर ‘दारा यः’ दारा-शि त, उसके साथ, पाँच मकार से आपक पूजा करता है और इस व या का
जप करता है, वह साधके अपनी ि ट से िजस-िजसको देखता है, शी ह उस-उसको मन- ाण-बु -
इि य -समेत व-वश हुए और अपने चरण म पड़े हुए देखता है ।
(८)
माया- यु न-यो न यनुगत-बगलाऽ े च मु यै गदा-धा र यै ।
वाहे त त वेि य- नचय-मयो म -राज चतुथः ।
पीताचारो य एनं जप त कुल- दशा शि त-यु तो नशायाम् ।
स ा ोऽभीि सताथाननुभव त सुखं सव-त -सवत ः ।।
हे मातः ! माया ‘ ं’ (यहाँ ि थर-माया भी वीकाय है, संगोपा त होने के कारण), यु न ‘ ल ’ं और
‘यो न ‘ऐं’ – इनके अनुगत ‘बगला’, उसके आगे ‘मु यै’ और ‘गदा-धा र यै वाहा’ – इस कार यह
त व (५) और इि य (१०) मलकर प ह वण का ( ं ल ं ऐं बगला-मु यै गदा-धा र यै वाहा)
म हुआ । इसे ‘बगला प चदशी म र न’ कहते ह । यह चौथा म -राज है , जो साधक- े ठ इस
म को कुल- म से - नशा म शि त-समि वत हुआ जपता है (अचन-तपण स हत), वह बु मान्
व वान् सव-त - वत होता है और अपने सभी अभी ट अथ का सुख-पूवक अनुभव करता है ।
(९)
ी-माया-यो न-पूवा भगव त बगले ! मे यं दे ह दे ह,
वाहे थं प चमोऽयं णव-सह-कृतो भ त-म दार-म ः।
सौव या मालयाऽमुं कनक- वर चते य के पीत- व याम् ।
यायन् पीता बरे ! वां जप त य इह स ी समा लं गतः यात् ।।
ी – ‘ ीं’ बीज और माया -’ ं’ बीज तथा यो न – ‘ऐं’ बीज पूव बोलकर ‘भगव त बगले ! मे यं दे ह
दे ह वाहा’ इस कार ‘ णव’ ॐ-कार स हत कया हुआ यह पाँचवाँ ‘भ त-म दार’ नाम का बगला
व या का म -र न है । इस म को सुवण क माला से सुवण य पर हे पीता बरे ! आप भगवती
को पूजता – याता हुआ जो मनु य जपता है, वह संसार म ी (ल मी) से समा लं गत रहता है ।
पीता बरा ‘प चदशी’ भी यह है, णव-स हत ‘षोडशी’ भी यह है ।
(१०)
एवं प चा प म ा अ भमत-फलदा व व-मातुः स ाः,
दे या पीता बरायाः णत-जन-कृते काम-क प- ुमि त ।
एतान् संसेवमाना जग त सुमनसः ा त-कामाः कवी ाः ।
ध या मा या वदा या सु व दत-यशसो दे शके ा भवि त ।।
इस कार ये पाँच म व व माता देवी भगवती पीता बरा के स ह और ये णत (भ त साधक)
जन के लए काम-क प ुम ह । इ ह साधते हुए व वान साधक भ त लोग पूण मनोरथ पाते और
क वराज बनते एवं ध य स माननीय तथा उदार नम वाले यात यश वी और दे शके अथात्
गु वर म डलाधीश बनते ह ।
कर थ चषक या , संभो य झषक य च ।
बगला-दशका येतुमातंगी मशकायते ।।
हाथ म सुधा-पूण पा हो (त व-शोधन करता और रह य-याग म होम करता हो तथा तपण – नरत हो),
आगे उस साधक के भो य पदाथ म का श त ‘झषक’ शो धत सं का रत हो । फर बगला भगवती का
दशक वह पढ़ता हो, ऐसे साधके के लए या उ त साधक के आगे मातंग हाथी भी मशक समान हो
जाता है । वह साधक हाथी को भी, अपने वप रत हो, तो म छर समझता है ।
B.R.VYAS-9829053681 BIKANER

Das könnte Ihnen auch gefallen