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BAGAL BRAHMASTRA MAHAVIDYA STOTRA

मा महा व या ीबगला तो

व नयोगः- ॐ अ य ी मा -महा- व या- ीबगला-मुखी तो य ीनारद ऋ षः, अनु टुप


छ दः, ी बगला-मुखी देवता, ‘ ं’ बीजं, ‘ वाहा’ शि तः, ‘बगला-मु ख’ क लकं, मम सि न हता-
नामसि न हतानां वरो धनां दु टानां वा मुख-गतीनां त भनाथ ीमहा-माया-बगला मुखी-वर-
साद स यथ पाठे व नयोगः ।
ऋ या द- यासः- ीनारद ऋषये नमः शर स, अनु टुप छ दसे नमः मुखे, ी बगला-मुखी देवतायै
नमः द, ‘ ं’ बीजाय नमः गु ये, ‘ वाहा’ श यै नमः नाभौ, ‘बगला-मु ख’ क लकाय नमः
पादयोः, मम सि न हता-नामसि न हतानां वरो धनां दु टानां वा मुख-गतीनां त भनाथ ीमहा-
माया-बगला मुखी-वर- साद स यथ पाठे व नयोगाय नमः सवागे ।

षड ग- यास कर- यास अंग- यास

ां ॐ ं अंगु ठा यां नमः दयाय नमः

ं बगलामु ख तजनी यां नमः शरसे वाहा

ूं सव-दु टानां म यमा यां नमः शखायै वष

वाचं मुखं पदं त भय अना मका यां नमः कवचाय हुं

िज वां क लय क नि ठका यां नमः ने - याय वौष

ः बु ं वनाशय ं ॐ वाहा करतल-कर-पृ ठा यां नमः अ ाय फ

यानः- हाथ म पीले फूल, पीले अ त और जल लेकर ‘ यान’ करे -


म ये सुधाि ध-म ण-म डप-र न-वे याम्,
संहासनोप र-गतां प रपीत-वणाम् ।
पीता बराभरण-मा य- वभू षतांगीम्,
देवीं नमा म धृत-मु -गर-वै र-िज वाम् ।। १
अथात् अमृत का सागर । बीच म म ण-म डप क र न-वेद । उस पर संहासन । उस पर पीले रंग
क देवी ‘बगला’ आसीन ह । उनके व , आभूषण तथा पु प-माला- सब कुछ पीले रंग के ह ह । बाँएँ
हाथ म श ु क जीभ खींचकर, दा हने हाथ से मु -गर लेकर, उस पर हार करने जा रह है । उ ह ं माँ
बगला को मेरा णाम ।। १
िज वा मादाय करेण देवीम्,
वामेन श ून् प र-पीडय तीम् ।
गदाऽ भघातेन च द णेन,
पीता बरा यां व-भुजां नमा म ।। २
अथात् बाँएँ हाथ म श ु क जीभ को खींचकर, दा हने हाथ म गदा लेकर हार करती हुई, पीता बरा
व-भुजा बगला को मेरा णाम ।।

।। मूल-पाठ ।।
चलत्-कनक-कु डलो ल सत-चा -ग ड- थल म्,
लसत्-कनक-च पक- यु तम द दु- ब बाननाम् ।
गदा-हत- वप कां क लत-लोल-िज वाऽ चलाम्,
मरा म बगला-मुखीं वमुख-वा -मनस- ति भनीम् ।। १
अथात् च चल सुवण-कु डल से शो भत कपोल वाल तथा कनक एवं च पा के पु प-स श शर र क
काि त वाल च -मुखी, गदा- हार से वप य को सदा वन ट करनेवाल , सु दर च चल-
जीभवाल , वमुख क वाणी और मन का त भन करनेवाल बगला-मुखी को मरण करता हूँ ।
पीयूषोद ध-म य-चा - वलस -र नो जवले म डपे,
तत्- संहासन-मूल-प तत- रपुं ेतासना या सनीम् ।
वणाभां कर-पी डता र-रसनां ा य गदां व तीम्,
य वां याय त याि त त य वलयं स योऽथ सवापदः ।। २
अथात् जो भ त साधक सुधा-समु के बीच म र नो वल म डप म अनेकानेक र न-ज टत वण-
संहासन पर आसीन, सुवण काि त-वाल , एक हाथ से श ु क जीभ और दूसरे से घूमती हुई गदा को
धारण कए, ेतासन पर बैठ हुई, श ुओं के शर को झूकानेवाल तुमको यान करता है, उसक
सम त आपदाएँ, तुर त समा त हो जाती ह ।
दे व ! व चरणा बुजाच-कृते यः पीत-पु पा ज लम्,
भ या वाम-करे नधाय च मनुं म ी मनो ा रम् ।
पीठ- यान-परोऽथ कु भक-वशा बीजं मरेत् पा थवम्,
त या म -मुख य वा च दये जा यं भवेत् त णात् ।। ३
अथात् हे दे व ! जो भ त तु हारे चरण-कमल के अचन म पीत-पु प क अ ज ल भि त-पूवक
नज वाम कर म रचकर, पीठ- यान म त पर होकर, कु भक, ाणायाम वारा तु हारे मनो
(मनोहर) अ रवाले म भू म-बीज (लं) का मरण करता है, उसके श ु के मुख-वचन और दय म
तुर त जड़ता या त हो जाती है ।
वाद मूक त रंक त त-प तव वानरः शीत त,
ोधी शा य त दुजनः सुजन त ानुगः ख ज त ।
गव खव त सव- व च जड त व मि णा यि तः,
ी- न ये, बगला-मु ख ! त दनं क या ण ! तु यं नमः ।। ४
अथात् तु हारे म के जानकार साधक के वारा यि त कया गया वाद गूँगा, राजा रंक, अि न
शीतल, ोधी शा त, दु ट-जन सु-जन, ती ग तवाला लँगड़ा, घम डी छोटा तथा सव जड़ हो जाता
है । इसी लए हे क या ण ! ी- व पे ! न ये ! भगव त बगले ! म तु ह त दन नम कार करता हूँ

म तावदलं वप -दलने तो ं प व ं च ते,
य ं वा द- नय णं -जगतां ज ं च च ं च ते ।
मातः ! ीबगले त नाम ल लतं य याि त ज तोमुखे,
व नाम- मरणेन संस द मुख- त भो भवे वा दनाम् ।। ५
अथात् वप य के दमनाथ तु हारा म ह पया त है और त -वत् प व तो भी । वा दय के
नय ण के लए लोक स तु हारा वजय-शाल -य भी व च है । हे माँ ! ‘ ीबगला’-यह
ल लत तु हारा नाम िजस साधक के मुख को शो भत करता है, वह भा य-शाल है, य क सभा म
तु हारे नाम का मरण करते ह वा दय का मुख ति भत हो जाता है ।
दु ट- त भनमु - व न-शमनं दा र य- व ावणम्,
भूभृत्-स दमनं चल मृग- शां चेतः समाकषणम् ।
सौभा यैक- नकेतनं सम- श का य-पूव णम्,
मृ योमारणमा वर तु पुरतो मात वद यं वपुः ।। ६
अथात् दु ट जन का त भक, उ व न का शामक, द र ता- नवारक, राजाओं का दमन-कारक,
मृगा य के च चल च त का समाकषक एवं सम-द शय के लए सौभा य का एकमेव नकेतन,
क णा-पूण ने वाला और मृ यु का भी मारक तु हारा सु दर शर र हे माँ ! मेरे आगे कट हो ।
मातभ जय म - वप -वदनं िज वां च संक लय,
ा मीं मु य दै य-देव- धषणामु ां ग तं त भय ।
श ूं चूणय दे व ! ती ण-गदया गौरां ग, पीता बरे !
व नौघं बगले ! हर णमतां का य-पूण णे ! ।। ७
अथात् हे गौरां ग ! पीता बरे ! माँ दे व ! मेरे वप य के मुख को तोड़ दो, उनक िज वा को क ल दो,
वाणी को ब द करो, देव और दै य क उ बु तथा ग तय को ति भत करो, अपनी ती ण गदा
से श ुओं को चूण कर दो, अपनी क णा-पूण ि ट से भ त के व न के समूह को दूर करो ।
मातभर व ! भ -का ल वजये ! वारा ह ! व वा ये !
ी व ये ! समये ! महे श ! बगले ! कामे श ! वामे रमे !
मातं ग ! पुरे ! परा पर-तरे ! वगापवग- दे !
दासोऽहं शरणागतः क णया व ववे व र ! ा ह माम् ।। ८
अथात् हे माँ बगले ! भैरवी, भ -काल , वाराह , भुवने वर , ी व या, षोडशी, बाला- पुर-सु दर ,
कमला आ द सब तु ह हो, वग और मो भी तु ह ं देती हो, परा पर म भी तुम हो, म तु हारा
शरणागत हूँ । हे व वे व र ! क णा करके मेर र ा करो ।
वं व या परमा लोक-जननी व नौघ-सं छे दनी,
योषाकषण-का र ण पशु-मनः-स मोह-स व नी ।
दु टो चाटन-का रणी पशु-मनः-स मोह-स दा यनी,
िज वा-क लन-भैरवी वजयते मा - व या परा ।। ९
अथात् तुम परमा व या हो, लोक क जननी हो, व न-समूह क ना शका हो, ि य को
आक षत करने वाल हो, जगत्- य का आन द बढ़ाने वाल हो, दु ट का उ चाटन करने वाल हो,
पशु-जन के मन को स मोह देनेवाल हो और श ु क िज वा-क लन करने म भैरवी हो । सदैव वजय
देनेवाल परा मा - व या हो ।
व या-ल मी न य-सौभा यमायुः,
पु ैः पौ ैः सव-सा ा य- स ः ।
मानं भोगो व यमारो य-सौ यम्,
ा तं सव भू-तले वत्-परेण ।। १०
अथात् स पूण व याएँ, ल मी, न य सौभा य, द घायु, पु -पौ ा द-स हत सव-सा ा य- स ,
मान, भोग, व यता, आरो यता, सुख आ द सम त जो-जो भी मनु य को ा त होना चा हए, वह सब
तु हार कृपा से इस पृ वी पर ह साधक को ा त होता है ।
पीता बरां व-भुजां च, -ने ां गा -कोमलाम् ।
शला-मु -गर-ह तां च, मरा म बगला-मुखीम् ।। ११
अथात् कोमल शर रवाल , व और मु गर हाथ म धारण करने वाल , -ने एवं दो भुजाओं वाल
पीता बरा बगला-मुखी का म मरण करता हूँ ।
पीत-व -ल सताम र-देह- ेत-वासन- नवे शत-देहाम्,
फु ल-पु प-र व-लोचन-र यां दै य-जाल-दहनो जवल-भूषां ।
पयकोप र-लस - वभुजां क बु-ज बु-नद-कु डल-लोलाम्,
वै र- नदलन-कारण-रोषां च तया म बगलां दया जे ।। १२
अथात् पीले व पहननेवाल , श ु के शव पर अ ध ठाता, फूल क तरह वक सता और सूय क तरह
द त लोचन, असुर के नधन के लए जो उजले व धारण करती है, पलँग पर शोभा पाने वाल
व-भुजा देवी, वलयाकार वण-कु डल-सुशो भता, श ुओं के नधन के लए जो अ य त ोधी ह,
उ ह ं का दय-कमल म यान करता हूँ ।
गेहं नाक त, ग वतः णम त, ी-संगमो मो त,
वेषी म त, पातकं सु-कृत त, मा-व लभो दास त ।
मृ युव य त, दूषण सु-गुण त, वत्-पाद-संसेवनात्,
व दे वां भव-भी त-भ जन-कर ं गौर ं गर श- याम् ।। १३
अथात् हे माँ ! तु हार चरण-सेवा से घर वग बन जाता है, अहंकार न तथा वनीत बन जाता है,
ी-संसग करने वाला मो ा त करता है, श ु म बन जाता है, पापी पु यवान् बन जाता है, राजा
दास बन जाता है, यम भी वै य बन जाता है तथा दुगुण स गुण म बदल जाता है । हे संसार-भय दूर
करने वाल , शव- या, गौर , बगला ! तु हार व दना करता हूँ ।
आरा या जद ब ! द य-क व भः सामािजकैः तोतृ भ-
मा यै च दन-कुंकुमैः प रमलैर यि चता सादरात् ।
स य - या स-सम त- नवहे, सौभा य-शोभा- दे !
ीमु धे बगले ! सीद वमले, दुःखापहे ! पा ह माम् ।। १४
अथात् अ या म-वाद क व, सामािजक जनता और तु त करने वाले भ त जग जननी बगला क
सादर पूजा करते ह । पु प-माला, च दन, कुंकुम और सुगि धत- य से देवी क आराधना क जाती
है । सब ा णय के शर र म स यक् प से रहने वाल , सौभा य- दा, ी-मु धा, वमला, दुःख-
हा रणी माँ बगला मेर र ा कर ।
यत्-कृतं जप-स नाहं, ग दतं परमे व र !
दु टानां न हाथाय, त गृहाण नमोऽ तु ते ।। १५
अथात् हे परमे व र ! दु ट के न हाथ तु हारे वषय म जो मने जपा द-पूवक कहा है, उसे तुम
वीकार करो, तु ह नम कार है ।
स ं सा येऽवग तुं गु -वर-वचने वाह- व वास-भाजाम्,
वा तः प ासन थां वर- च-बगलां यायतां तार-तारम् ।
गाय ी-पूत-वाचां ह र-हर-नमने त पराणां नराणाम्,
ातम या न-काले तव-पठन मदं काय- स - दं यात् ।। १६
अथात् हे ह र-हर आ द क व दनीया माँ बगला ! स -गु के वचन म व वास रखने वाला, तुमम
अटल भि त रखने वाला, गाय ी- स यि त, सा य- वषय म स ाि त के लए अपने दय म
प ासना, उ तम यो त- व श टा बगला का यान कर ातः और म या न म इस तव का
नर तर पाठ करे, तो काय स होता है ।
व या ल मीः सव-सौभा यमायुः,
पु ैः पौ ौः सव-सा ा य- स ः ।
मानं भोगो व यमारो य-सौ यम्,
ा तं सव भू-तले वत्-परेण ।। १७
अथात् व या, ल मी, सारे सौभा य, आयु, पु -पौ ा द के साथ सारे सा ा य क ाि त, स मान,
भोग, यश, आरो य तथा सुख आ द संसार का सब कुछ तु हार आराधना से ा त होता है ।
यत्-कृतं जप-सं यानं, च तनं परमे व र !
श ूणां त भनाथाय, त गृहाण नमोऽ तु ते ।। १८
अथात् हे परमे व र ! श ुओं के त भन के लए मने जो जप, यान तथा च तन कया, वह सब
हण करो । तुमको मेरा णाम है ।
।। फल- ु त ।।
न यं तो मदं प व मह यो दे याः पठ यादरात्,
धृ वा य मदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले ।
राजानोऽ यरयो मदा ध-क रणः सपा मृगे ा दकाः,
ते वै याि त वमो हता रपु-गणा ल मोः ि थरा सवदा ।। १
अथात् भगवती पीता बरा के इस प व तो का पाठ जो साधक न य आदर-पूवक करता है तथा
इनके य को बाहु म अथवा कर म या गले म यु -काल म धारण करता है, तो राजा एवं श ु-गण
वमो हत हो जाते ह । इतना ह नह ,ं इसे साधक को ल मी क भी ि थरता ा त होती है ।
संर भे चौर-संघे हरण-समये ब धने या ध-म ये,
व या-वादे ववादे कु पत-नृपतौ द य-काले नशायाम् ।
व ये वा त भने वा रपु-वध-समये नजने वा वने वा,
ग छँि तषठँि -कालं य द पठ त शवं ा नुयादाशु धीरः ।। २
अथात् हे दे व ! व लव-काल म, चोर के समूह म, श ु पर हार-काल म ब धन म, या ध-पीड़ा म,
व या-स ब धी ववाद म, मौ खक कलह म, नृप-कोप म और रा के द य-काल म, व य काय म,
त भन म तथा श ु-वध के समय, नजन थान म अथवा वन म कह ं भी चलता हुआ, बैठा हुआ
तीन काल म जो साधक तु हारे तो का पाठ करता है, वह धीर पु ष शी ह क याण ा त करता
है ।
अनु दनम भरामं साधको यि -कालम्,
पठ त स भुवनेऽसौ पू यते देव-वगः ।
सकलममल-कृ यं त व- टा च लोके,
भव त परम- स ा लोक-माता परा बा ।। ३
अथात् जो साधक त- दन -स या म इसका पाठ करता है, वह इस जगत् म देवताओं के वारा
पूिजत होता है । उसके सारे काम बन जाते ह और वह संसार म त व-दश बनता है । जग जननी
परा बा बगला उसके लए परम स देवी बन जाती है ।
मा म त व यातं, षु लोकेषु दुलभम् ।
गु -भ ताय दात यं, न देयं य य क य चत् ।। ४
अथात् लोक म ‘ मा ’ नाम से यात इस तो को सबको न देकर केवल गु -भ त श य को
देना चा हए ।
।। ी -यामले उ तर-ख डे ी मा - व या ीबगला-मुखी तो म् ।।
B.R.VYAS-9829053681 BIKANER

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