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कालिका नामो हि धमाा

कालिका सेवा हि धमाा


कालिका हि सवात्र
कालिका हि सवास्व

॥शाबर तंत्र ग्रप


ु की गररमामयी प्रस्ततु त॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र ससंह, श्री पुखराज मेवाड़ा, श्री संजय D जोशी, श्रीमती मीनाक्षी ससंह ॥
॥ससद्ध कंु जजका स्तोत्र॥

पििे कुं जिका स्त्रोत्र को लस्ध क िे सुंक्प िेक 11000 बा िप पूर्ा क ना चाहिए, साधक वर्ा
अपनी सववधानसा इसके अधधक िप भी पूर्ा क िें तो सफिता का प्रततशत औ अधधक बढ़ िी
िाता िै अस्त आिस्य एवुं प्रमाद का त्यार् क के पूर्ा श्र्ध ा भाव एवुं समपार् से सम्पन्न क ना
चाहिए ।

भर्वान लशव ने पावाती से किा िै कक दर्ाा सप्तशती के सुंपूर्ा पाठ का िो फि िै वि लसफा


कुं जिकास्तोत्र के पाठ से प्राप्त िो िाता िै । कुं जिकास्तोत्र का मुंत्र स्वयुंलस्ध िै इसलिए इसे लस्ध क ने
की िरू त निीुं िै । िो साधक सुंक्प िेक इसके मुंत्रों का िप क ते िए दर्ाा माुं की आ ाधना
क ते िैं माुं उनकी इजछित मनोकामना तनश्चय िी पू ा क ती िैं। इसमें ध्यान खने योग्य बात यि िै
कक कुं जिकास्तोत्र के मुंत्रों का िप ककसी को नकसान पिुं चाने के लिए निीुं क ना चाहिए। ककसी को
क्षतत पिुं चाने के लिए कुं जिकास्तोत्र के मुंत्र की साधना क ने प साधक का खद िी अहित िोता िै ।

॥ववतनयोग:॥

ॐ अस्य श्री कजन्िका स्त्रोत्र मुंत्रस्य सदालशव ऋवि। :


अनष्टपिुं दः । श्रीत्रत्रर्र्ाजत्मका दे वता । ॐ ऐुं बीिुं । ॐ ह्ीुं शजतत। : ॐ तिीुं कीिकुं । मम
सवााभीष्टलसध्यर्थे िपे ववनयोर्। :

॥ऋष्यादद न्यास::॥

श्री सदालशव ऋिये नमः लश लस ।


अनष्टप िन्दसे नमः मखे ।
त्रत्रर्र्ात्मक दे वतायै नमः हृहद ।
ऐुं बीिुं नमः नाभौ ।
ह्ीुं शततयो नमः पादौ ।
तिीुं कीिकुं नमः सवाांर्े ।
सवााभीष्ट लस्ध यर्थे िपे ववतनयोर्ः नमः अुंििौ।

॥करन्यास::॥

॥शाबर तंत्र ग्रप


ु की गररमामयी प्रस्ततु त॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र ससंह, श्री पुखराज मेवाड़ा, श्री संजय D जोशी, श्रीमती मीनाक्षी ससंह ॥
ऐुं अुंर्ष्ठाभयाुं नमः।
ह्ीुं तिानीभयाुं नमः।
तिीुं मध्यमाभयाुं नमः।
चामण्डायै अनालमकाभयाुं नमः।
ववछचे कतनजष्ठकाभयाुं नमः।
ऐुं ह्ीुं तिीुं चामण्डायै ववछचे क तिक प्रष्ठाभयाुं नमः।

॥हृदयाददन्यास:॥:

ऐुं हृदयाय नमः।


ह्ीुं लश से स्वािा।
तिीुं लशखायै विट।
चामण्डायै कवचाय िुं ।
ववछचे नेत्रत्रयाय वौिट।
ऐुं ह्ीुं तिीुं चामण्डायै ववछचे अस्त्राय फट।

॥ध्यानं:॥

ध्यानुं लसुंिवाहिन्यै त्रत्रर्र्ाजत्मका चामुंडा


ततनेत्री, ततवप्रया, ततपष्पमािाधार र्ी
िािवस्त्र भूविता ततनेत्रा मधपात्रधा र्ी
मेघर्जिातन अट्टटािलसनी दानवकिघाततनी
दास क्षक्षर्ी र्वप्रया खेटक खड़र्धार र्ी
क्यार्ी िर्तिननी दे वी भवभय-िार र्ी

॥सशव उवाच:॥

शर्
ृ दे वव प्रवक्ष्यालम कजजिकास्तोत्रमत्तमम ्। येन मन्त्रप्रभावेर् चण्डीिापः शभो भवेत ्॥१॥
न कवचुं नार्ािास्तोत्रुं कीिकुं न िस्यकम ्। न सत
ू तुं नावप ध्यानुं च न न्यासो न च वाचानम ्॥२॥
कजजिकापाठमात्रेर् दर्ाापाठफिुं िभेत ् अतत र्ह्यत ुं दे वव दे वानामवप दिाभम ्॥३॥
र्ोपनीयुं प्रयत्नेन स्वयोतनर व पावातत। मा र्ुं मोिनुं वश्युं स्तम्भनोछचाटनाहदकम ्।
पाठमात्रेर् सुंलसद्धध्येत ् ॥कजजिकास्तोत्रमत्तमम ्॥४॥

॥शाबर तंत्र ग्रप


ु की गररमामयी प्रस्ततु त॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र ससंह, श्री पुखराज मेवाड़ा, श्री संजय D जोशी, श्रीमती मीनाक्षी ससंह ॥
॥अथ मंत्र:॥

ॐ ऐुं ह्ीुं तिीुं चामण्डायै ववछचे। ॐ ग्िौ िुं तिीुं िुंू सः ज्वािय ज्वािय ज्वि ज्वि प्रज्वि प्रज्वि ऐुं
ह्ीुं तिीुं चामण्डायै ववछचे ज्वि िुं सुं िुं क्षुं फट् स्वािा।।

॥ इतत मंत्रः॥

श्रूूँ श्रूूँ श्रूूँ शुं फट् ऐुं ह्ीुं तिीुं ज्वि उज्ज्वि प्रज्वि ह्ीुं ह्ीुं तिीुं स्रावय स्रावय शापुं नाशय नाशय
श्रीुं श्रीुं श्रीुं िूुं सः स्रावय आदय स्वािा। ॐ श्िीुं िूूँ तिीुं ग्िाुं िूुं सः ज्वि उज्ज्वि मन्त्रुं
प्रज्वि िुं सुं िुं क्षुं फट् स्वािा।

नमस्ते रुद्ररूवपण्यै नमस्ते मधमहदा तन। नमः कैटभिार ण्यै नमस्ते महििाहदा तन॥६॥
नमस्ते शम्भिन््यै च तनशम्भास घातततन । िाग्रतुं हि मिादे वव िपुं लस्ध ुं करूष्व मे॥७॥
ऐङ्का ी सजृ ष्टरूपायै ह्ीङ्का ी प्रततपालिका। तिीङ्का ी कामरूवपण्यै बीिरूपे नमोऽस्त ते॥८॥
चामण्डा चण्डघाती च यैका ी व दातयनी। ववछचे चाभयदा तनत्युं नमस्ते मन्त्ररूवपणर्॥९॥
धाुं धीुं धूुं धि
ू ट
ा े ः पत्नी वाुं वीुं वूुं वार्धीश्व ी। क्ाुं क्ीुं क्ुंू कजजिका दे वव शाुं शीुं शूुं मे शभुं करु॥१०॥

॥कासिका दे वव॥

िुं िुं िङ्का रूवपण्यै िुं िुं िुं िम्भनाहदनी। ज्ाुं ज्ीुं ज्ूुं भािनाहदनी।
भ्ाुं भ्ीुं भ्ूुं भै वी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥११॥
अुं कुं चुं टुं तुं पुं युं शुं वीुं दुं ऐुं वीुं िुं क्षुं।
धधिाग्रुं॥१२धधिाग्रुं त्रोटय त्रोटय दीप्तुं करु करु स्वािा॥

ॐ अुं कुं चुं टुं तुं पुं साुं ववद ाुं ववद ाुं ववमदा य ववमदा य
ह्ीुं क्षाुं क्षीुं स्रीुं िीवय िीवय त्रोटय त्रोटय िम्भय िुंभय दीपय दीपय मोचय मोचय
िूुं फट् ज्ाुं वौिट् ऐुं ह्ीुं तिीुं जिय जिय सजिय सजिय र्जिय र्जिय बन्धय बन्धय
भ्ाुं भ्ीुं भ्ुंू भै वी भद्रे सङ्कच सङ्कच त्रोटय त्रोटय म्िीुं स्वािा॥१२॥

पाुं पीुं पुंू पावाती पर्


ू ाा खाुं खीुं खुंू खेच ी तर्था। म्िाुं म्िीुं म्िुंू मि
ू ववस्तीर्ाा कजजिकास्तोत्र िे तवे।
साुं सीुं सुंू सप्तशती दे व्या मुंत्रलसव्ध ुं करूष्व मे॥१३॥ कजजिकायै नमो नमः।

॥शाबर तंत्र ग्रप


ु की गररमामयी प्रस्ततु त॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र ससंह, श्री पुखराज मेवाड़ा, श्री संजय D जोशी, श्रीमती मीनाक्षी ससंह ॥
॥फिश्रतु त॥

इदुं त कजजिकास्तोत्रुं मन्त्रिार्ततािेतवे।


अभतते नैव दातव्युं र्ोवपतुं क्ष पावातत॥१४॥
यस्त कजजिकया दे वव िीनाुं सप्तशतीुं पठे त ् ।
न तस्य िायते लसव्ध ण्ये ोदनुं यर्था॥१५॥
कािीपत्र वदालम सत्युं सत्युं पनः सत्युं।
स्तोत्रुं प माद्भतुं सवाकािे न िेशमात्र शुंसयुं॥१६॥

। इतत श्री डामरतन्त्रे ईश्वरपाववतीसंवादे कुजजजकास्तोत्रं सम्पूर्म


व ्।

॥अपराध क्षमापर् स्तोत्रम ्:॥


ॐ अप ाधसिस्त्राणर् कक्यन्तेऽितनाशुं मया। दासोऽयलमतत माुं मत्वा क्षमस्व प मेश्वर ।।१।।
आवािनुं न िानालम न िानालम ववसिानम ्। पूिाुं चैव न िानालम क्षम्यताुं प मेश्वर ।।२।।
मन्त्रिीनुं कक्यािीनुं भजततिीनुं स े श्वर । यत्पूजितुं मया दे वव पर पूर्ां तदस्त मे।।३।।
अप ाधशतुं कृत्वा िर्दम्बेतत चोछच े त ् । याुं र्ततुं समवाप्नोतत न ताुं ब्रह्मादयः स ाः।।४।।
साप ाधोऽजस्म श र्ुं प्राप्तस्त्वाुं िर्दजम्बके। इदानीमनकम्प्योऽिुं यर्थेछिलस तर्था करु।।५।।
अज्ञानाद्धववस्मत
ृ ेभ्ोन्त्या यन्न्यूनमधधकुं कृतम ्। तत्सवां क्षम्यताुं दे वव प्रसीद प मेश्वर ।।६।।
कामेश्वर िर्न्मातः सजछचदानन्दववग्रिे । र्ि
ृ ार्ाचाालममाुं प्रीत्या प्रसीद प मेश्वर ।।७।।
र्ह्याततर्ह्यर्ोप्त्री त्वुं र्ि
ृ ार्ास्मत्कृतुं िपम ्। लसव्ध भावत मे दे वव त्वत्प्रसात्स े श्वर ।।८।।

।।इतत अपराधक्षमापर्स्तोत्रं समाप्तम ्।।

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॥शाबर तंत्र ग्रप


ु की गररमामयी प्रस्ततु त॥
॥ सादर आभार – श्री महें द्र ससंह, श्री पुखराज मेवाड़ा, श्री संजय D जोशी, श्रीमती मीनाक्षी ससंह ॥

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